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________________ [२९५ ४, २, ६, १६४.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे अप्पाबहुअपरूवणा अपजत्तयस्से मोहणीयस्स णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि संखेजगुणाणि । बादरेइंदियअपजत्तयस्स णाणापदेसगुहाणिहाणंतराणि विसेसाहियाणि । सुहुमेइंदियपजत्तयस्स मोहणीयस्स णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि विसेसाहियाणि । बादरएइंदियपजत्तयस्स मोहणीयस्स णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि विसेसाहियाणि । बेइंदियअपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि संखेजगुणाणि। तस्सेव पजत्तयस्स णामा-गोदाणं णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि विसेसाहियाणि । तस्सेव अपजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि विसेसाहियाणि । तस्सेव पजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि विसेसाहियाणि । तेइंदियअपजत्तयस्स णामा-गोदाणं णाणापदेसगुहाणिहाणंतराणि विसेसाहियाणि । तस्सेव पजत्तयस्स णामा-गोदाणं णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि विसेसाहियाणि । तस्सेव अपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि विसेसाहियाणि । तस्सेव पजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि विसेसाहियाणि । बेइंदियअपजत्तयस्सै मोहणीयस्स णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि विसेसाहियाणि । तस्सेव पजत्तयस्सै मोहणीयस्स णाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि विसेसाहियाणि । चउरिंदियअपजत्तयस्स णामा-गोदाणं पाणापदेसगुणहाणिहाणंतराणि विसेसाहियाणि । तस्सेव पजत्तयस्स णामा-गोदाणं णाणापदेसगुणहाणिहाणतराणि विसेसाहियाणि | सण्णिपंचिंदियपज्जत्ताणमाउअस्स णाणापदेसगुणहासूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके मोहनीयके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर संख्यातगुणे हैं। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक हैं। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक हैं। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक हैं । द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके नामगोत्रके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर संख्यातगुणे हैं । उसीके पर्याप्तकके नाम-गोत्रके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक हैं । उसीके अपर्याप्तकके चार कमों के नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक हैं । उसीके पर्याप्तकके चार कमौके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर यिशेष अधिक हैं । त्रीन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम-गोत्रके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक है । उसीके पर्याप्तकके नाम-गोत्रके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक हैं। उसीके अपर्याप्तकके चार काँके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक हैं। उसीके पर्याप्तकके चार कर्मोंके नाना. प्रदेशगुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक हैं । द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके मोहनीयके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक हैं। उसीके पर्याप्तकके मोहनीयके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक हैं। चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम-गोत्रके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक हैं । उसीके पर्याप्तकके नाम-गोत्रके नानाप्रदेशगुणहानिस्थानान्तर विशेष अधिक हैं। संशी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीवोंके आयुके नानाप्रदेशगुण १ अ-आ-काप्रतिषु 'पज.', ताप्रती [अ] पज.' इति पाठः । २ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-ताप्रतिधुदिपमइति पाठः।.३ तामतो' अपनइति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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