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________________ २८८ छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, १६४. आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स आबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि संखेजगुणाणि । सुहुमेइंदियपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणमाबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुलाणि संखेजगुणाणि । चदुण्णं कम्माणमाबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स आबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि संखेजगुणाणि । बादरेइंदियपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं आबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो तुल्लाणि संखेजगुणाणि । चदुण्णं कम्माणमाबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स आबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि संखेज्जगुणाणि । बेइंदियअपज्जत्तयस्स णामा-गोदामाबाहट्ठाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि असंखेजगुणाणि । चदुण्णं कम्माणमाबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स आबाहाट्ठाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुलाणि संखेजगुणाणि । तस्सेव पजत्तयस्स णामा-गोदाणमाबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि संखेजगुणाणि । चदुण्णं कम्माणमावाहाहाणाणि आवाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि विसेसाहियाणि । मोहणीयस्स आबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुल्लाणि संखेजगुणाणि । तेइंदियअपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणमाबाहट्ठाणाणि आबाहाकंदयाणि च दो वि तुलाणि संखेजगुणाणि । चदुण्णं कम्माणमाबाहाहाणाणि आबाहाकंदयाणि च कौके आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य विशेष अधिक हैं। मोहनीयके आवाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य संख्यातगुणे हैं। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके नाम-गोत्रके आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य संख्यातगुणे हैं। चार काँके आवाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य विशेष अधिक हैं। मोहनीयके आवाधास्थान और आवाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य संख्यातगुणे हैं । बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके नाम गोत्रके आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य संख्यातगुणे हैं। चार कर्मों के आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तल्य विशेष अधिक हैं । मोहनीयके आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य संख्यातगुणे हैं। द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम-गोत्रके आवाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य असंख्यातगुणे हैं । चार कर्मोंके आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य विशेष अधिक हैं । मोहनीयके आवाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य संख्यातगुणे हैं । उसीके पर्याप्तकके नाम-गोत्रके आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य संख्यातगुणे हैं । चार कमौके आवाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य विशेष अधिक हैं । मोहनीयके आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक.दोना। श्रीन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम-गोत्रके आबाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य संख्यातणे हैं । चार कर्मोंके आवाधास्थान और आबाधाकाण्डक दोनों ही तुल्य विशेष __१ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-काप्रतिषु 'असंखेनगुणाणि', ताप्रतौ स्वीकृतपाठ एव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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