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________________ २६६] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ६, १२१. अजहण्णअणुक्कस्सदव्वमसंखेजगुणं । को गुणगारो? सादिरेगेगरूवपरिहीणदिवडगुणहाणी । किं कारणं ? रूवूणदिवड्डगुणहाणिसलागाहि पढमणिसेगे गुणिदे पढमणिसेयवदिरित्तउवरिमसवहिदिदव्वं होदि २८१६ । पुणो एदम्मि चरिमहिदिदन्वेण विणा इच्छिन्जमाणे रूखूणदिवडगुणहाणीए एगरूवस्स असंखेजदिभागमवणिय पढमणिसेगे गुणिदे अजहण्णअणुक्कस्सदव्वं होदि २८०७ । अपढमं विसेसाहियं । केत्तियमेत्तो विसेसो ? उक्कस्सहिदिदव्वमेत्तो २८१६ । अणुक्कस्सं विसेसाहियं । केत्तियमेत्तो विसेसो ? चरिमणिसेगेणूणपढमणिसेगमेत्तो। सव्वासु हिदीसु पदेसग्गं विसेसाहियं । केत्तियमेत्तेण ? चरिमहिदिदव्वमेत्तेण । एवं णिसेयपरूवणा समत्ता। आबाधकंदयपरूवणदाए ॥ १२१ ॥ किमट्ठमाबाधकंदयपरूवणा आगदा ? किं सवहिदिबंधट्टाणेसु एक्का चेव आबाहा होदि, आहो अण्णण्णा होदि त्ति पुच्छिदे एवं होदि त्ति जाणावणट्ठमाबाहाकंदयपरूवणा निषेकको गुणित करनेपर प्रथम निषेक होता है --२५६४९ = २५६ । उससे अजघन्यानुत्कृष्ट द्रव्य असंख्यातगुणा है । गुणकार क्या है ? गुणकार साधिक एक अंकसे हीन डेढ़ गुणहानियां हैं। शंका-इसका कारण क्या है ? समाधान- इसका कारण यह है कि एक कम डेढ़गुणहानिशलाओंसे प्रथम निषेकको गुणित करनेपर प्रथम निषेकसे रहित अग्रिम सब स्थितियोंके द्रव्यका प्रमाण होता है-[२५६४(१२-१)=२८१६ (३०७२-२५६)]। __ अब यदि यह द्रव्य अन्तिम स्थितिके द्रव्यसे रहित अभीष्ट है, तो एक कम डेढ़ गुणहानिमेंसे एक अंकके असंख्यातवें भागको घटाकर शेषसे प्रथम निषेकको गुणित करनेपर अजघन्यअनुत्कृष्ट द्रव्यका प्रमाण होता है-१२-१=११, ११-३५-१०३२४, २५६४३६ = २८०७। इसकी अपेक्षा प्रथम स्थितिसे हीन सब द्रव्य विशेष अधिक है। विशेष कितना है ? वह उत्कृष्ट अर्थात् अन्तिम स्थितिके द्रव्यके बराबर है--२८०७+९=२८१६ । इससे अनुत्कृष्ट द्रव्य विशेष अधिक है। विशेष कितना है? वह अन्तिम निषेकसे हीन प्रथम निषेकके बराबर है-(२५६-९-२४७, २८१६+२४७-३०६३)। इससे सब स्थितियों में प्रदेशाग्र विशेष अधिक है। कितने मात्र विशेषसे वह अधिक है ? वह अन्तिम स्थितिके द्रव्यप्रमाणसे अधिक है-(२०६३+९-३०७२)। इस प्रकार निषेकप्ररूपणा समाप्त हुई। आबाधाकाण्डक प्ररूपणाका अधिकार है ॥ १२१ ॥ शंका-आबाधाकाण्डक प्ररूपणाका अवतार किसलिये हुआ है ? समाधान-सब स्थितिबन्धस्थानोंमें क्या एक ही आबाधा है, अथवा अन्य-अन्य हैं,ऐसा पूछने पर 'इस प्रकारकी आबाधा व्यवस्था है' यह जतलानेके लिये आबाधाकाण्डक प्ररूपणाका अवतार हुआ है। १ अ-आ-काप्रतिषु 'अण्णोण्णा', ताप्रती ' अण्णा ण' इति पाठ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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