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________________ ४, २, ६, १२०.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे णिसेयपरूवणा [२६१ तं जहा-१६ । १५।१।१६ । १२ स्वणणिसेयभागहारमेत्तगोवुच्छविसेसे घेत्तण जदि एगं बिदियणिसेयपमाणं लब्भदि, तो दिवड्डगुणहाणिमेत्तगोवुच्छविसेसु किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए संदिट्ठीए चत्तारि पंचभागा होंति ४ । ५। पुणो एदं दिवड्डगुणहाणीसु सरिसच्छेदं' कादूण पक्खित्ते एत्तियं होदि ६४ । ५ । पुणो एदेण सव्वंदव्वे भागे हिदे बिदियणिसेगो आगच्छदि । तदियाए हिदीए पदेसग्गपमाणेण सव्वहिदिपदेसग्गं केवचिरेण कालेण अवहिरिअदि ? सादिरेयरूवाहियदिवड्डगुणहाणिहाणंतरेण कालेण अवहिरिजदि १६ । १४ । १। १६ । २४ । दोवूणणिसेयभागहारमेत्तगोवुच्छविसेसेहिंतो जदि एगं तदियणिसेयपमाणं लभदि तो तिण्णिगुणहाणिमेत्तगोवुच्छविसेसेसु केवडिए तदियणिसेगे लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवष्टिदाए एत्तियं होदि १। ५ । ७। पुणो एदम्मि दिवड्डगुणहाणिम्मि पक्खित्ते एत्तियं होदि ९६ । ७ पुणो एदेण सव्वदव्वे भागे हिदे तदियणिसेयो आगच्छदि । एवं जाणिदूण उवरि णेदव्वं जाव पढमगुणहाणीए अद्धं गदं ति। अब अधिक गोपुच्छविशेषोंको द्वितीय निषेकके प्रमाणसे करते हैं । यथा-एक कम निषेकभागहार प्रमाण गोपच्छविशेषोंको ग्रहण कर यदि एक द्वितीय निषेकका प्रमाण पाया जाता है, तो डेढ़ गुणहानि प्रमाण गोपुच्छविशेषोंमें कितना द्वितीय निषेकका प्रमाण प्राप्त होगा, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित करनेपर वह पाँच भागोंमेंसे चार भाग (६) प्रमाण होता है। . उदाहरण-यहां निषेकभागहारका प्रमाण १६ और गोपुच्छविशेषका प्रमाण भी १६ है; अतः निम्न प्रकार त्रैराशिक करनेपर उपर्युक्त प्रमाण प्राप्त होता है१२४६१-=( २४५४४)=१९२। पुनः इसको समच्छेद करके डेढ़ गुणहानियों में मिलानेपर इतना होता है-१५+३=६६। इसका सब द्रव्यमें भाग देने पर द्वितीय निषेक प्राप्त होता है-३०७२ ५ २४०।। __ तृतीय स्थिति सम्बन्धी प्रदेशाग्रप्रमाणसे सब स्थितियोंका प्रदेशपिण्ड कितने कालसे अपहृत होता है ? वह साधिक एक अंकसे अधिक डेढ़ गुणहानिस्थानान्तरकालसे अपहृत होता है। दो रूपोंसे कम निषेकभागहार प्रमाण गोपुच्छविशेषोंसे यदि एक तृतीय निषेक प्राप्त होता है, तो तीन गुणहानियोंके बराबर गोपुच्छविशेषोंमें कितने तृतीय निषेक प्राप्त होंगे, इस प्रकार फलगुणित इच्छामें प्रमाणका भाग देनेपर इतना होता है उदाहरण-निषेकभागहार १६; गोपुच्छ १६, १६-२-१४, २४४=१७ । . इसको डेढ़ गुणहानियों में मिला देनेपर इतना होता है-१२+१.२ =-९६ । अब . इसका समस्त द्रव्यमें भाग देनेपर तृतीय निषेक आता है ३०७२: १२२४ । इस प्रकार जानकर प्रथम गुणहानिका अर्ध भाग समाप्त होने तक ले जाना चाहिये। .. १ ताप्रती ' सरिच्छेदं ' इति पाठः। २ प्रतिषु ६४ इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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