SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 265
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४० ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, १०२. भागाभागो अप्पाबहुगं चेदि छ अणियोगद्दाराणि वत्तव्वाणि भवंति । एत्थ ताव परूवणं पमाणं च वत्तइस्लामो । तं जहा - चदुष्णं कम्माणं तिण्णिवाससहस्साणि आबाधं मोत्तूण जो उवरिमसमओ तत्थ णिसित्तपदेसग्गमत्थि । तत्तो अनंतरउवरिमसमए णिसित्तपदेसग्गं पि अस्थि । तत्तो उवरिमतदियसमए णिसित्तपदेसग्गं पि अस्थि । एवं दव्वं जाय ती संसारोवमकोडाकोडीणं चरिमसमओ त्ति । परूवणा गदा । पढाए दिए णित्तिपरमाणु अभवसिद्धिएहि अनंतगुणा सिद्धाणमणंतभागमेत्ता । एवं यव्वं जाव उक्कस्सहिदि ति । पमाणपरूवणा गदा । सेडिपरूवणा दुविहा - अणंतरोवणिधा परंपरोवणिधा चेदि । तत्थ अणंतरोवणिधा बुच्चदे — तिण्णिवाससहस्साणि आबाधं मोत्तूण जं पढमसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं बहुगं । जं बिदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं णिसेगभागहारेण खंडिदेगखंडमेत्तेण । जं तिदियसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं रूवणणिसेगभागहारेण खंडिदेगखंडमेत्तेण । जं चउत्थसमए पदेसग्गं णिसित्तं तं विसेसहीणं दुरूवूण णिसेगभागहारेण खंडिदेगखंडमेत्तेण । एवं यव्वं जाव पढमणिसेयस्स अद्धं चेट्ठिदं त्ति । पुणो बिदियगुणहाणिपढमणिसेयादो इन छह अनुयोगद्वारोंकी प्ररूपणाकरने योग्य है । इनमें पहिले प्ररूपणा और प्रमाणका कथन करते हैं । वह इस प्रकार है-चार कर्मोकी तीन हजार वर्ष प्रमाण आबाधाको छोड़कर जो अगला समय है उसमें निषिक्त प्रदेशान है। उससे अव्यवहित आगे के समय में निषिक्त प्रदेशाग्र भी है। उससे आगे के तीसरे समय में निषिक्त प्रदेशात्र भी है। इस प्रकार तीस कोड़ाकोड़ि सागरोपमोंके अन्तिम समय तक ले जाना चाहिये । प्ररूपणा समाप्त हुई । प्रथम स्थितिमें निषिक्त परमाणु अभव्य सिद्धोंसे अनन्तगुणे व सिद्धोंके अनन्तवें भाग प्रमाण हैं । [ द्वितीय स्थितिमें निषिक्त परमाणु विशेष हीन हैं ।] इस प्रकार उत्कृष्ट स्थिति तक ले जाना चाहिये । प्रमाणप्ररूपणा समाप्त हुई । श्रेणिप्ररूपणा दो प्रकार है - अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधा । इनमें अनन्तरोपनिधाको कहते हैं 1 तीन हजार वर्ष प्रमाण आबाधाको छोड़कर जो प्रथम समय में निषिक्त प्रदेशाप्र ( २५६ ) है वह बहुत है । जो द्वितीय समय में निषिक्त प्रदेशाग्र है वह निषेकभागहारका भाग देनेपर जो एक भाग लब्ध हो उतने ( २५६ ÷ १६ = १६ ) मात्र से विशेष हीन है । जो प्रदेशात्र तृतीय समयमें निषिक है वह एक अंक कम निषेकभागहारका भाग देनेपर जो एक भाग प्राप्त हो उतने [ २४० : ( १६ - १ ) = १६ ] मात्र से विशेष हीन है । चतुर्थ समयमें जो प्रदेशाग्र निषिक्त है वह दो अंक कम निषेक भागहारका भाग देनेपर जो एक भाग प्राप्त हो उतने [ २२४ ( १६-२ )+१६ मात्र से विशेष हीन है । इस प्रकार प्रथम निषेकके अर्ध भाग तक ले जाना चाहिये । १ अ आ-काप्रतिषु ' अत्थं ' इति पाठः । Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy