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४, २, ६, १०१. ] वेणमहाहियारे वेयणकालविहाणे णिसेयपरूवणा
मिच्छतोदयणिमित्तेण वा असंजदसम्माइट्ठि सव्वुक्कस्सट्ठिदिबंधादो संजमाहिमुह - चरिमसमयमिच्छाइट्ठिस्स जहणट्ठिदिबंधो संखेजगुणो ।
तस्सेव अपज्जत्तयस्स जहण्णओ ट्ठिदिबंधो संखेज्जगुणो ॥ ९८ ॥
कुदो ? संजमा हिमुहचरिमसमयमिच्छाइट्ठिसंकिलेसादो अपजत्तमिच्छाइट्ठिसव्वजहण्णसंकिलेसस्स अनंतगुणत्तुवलंभादो ।
तस्सेव अपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ द्विदिबंधो संखेज्जगुणो ॥ ९९ ॥
दं ।
तस्सेव पज्जत्तयस्स उक्कस्सओ द्विदिबंधो संखेज्जगुणो ॥ १०० ॥
अपज्जत्तकालसंकिलेसादो पजत्तद्धा सव्वुक्कस्ससंकिलेसस्स अनंतगुणत्तुवलंभादो । एवं द्विदिबंधद्वाणपरूवणा त्ति समत्तमणियोगद्दारं ।
- णिसेयपरूवणदाए तत्थ इमाणि दुवे अणियोगद्दाराणि अनंतरावणिधा परंपरोवणिधा ॥ १०१ ॥
निषेचनं निषेकः, कम्मपरमाणुक्खंधणिक्खेवो णिसेगो णाम । तस्स परूवणदाए स्थितिबन्धकी अपेक्षा संयमके अभिमुख हुए अन्तिम समयवर्ती मिथ्यादृष्टिका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ।
उसीके अपर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ॥ ९८ ॥
कारण कि संयम अभिमुख हुए अन्तिम समयवतीं मिथ्यादृष्टिके संक्लेशकी अपेक्षा अपर्याप्त मिध्यादृष्टिका सर्वजघन्य संक्लेश अनन्तगुणा पाया जाता है ।
उसीके अपर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ॥ ९९ ॥ यह सूत्र सुगम है ।
उसीके पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है ॥ १०० ॥
कारण कि अपर्याप्तकालीन संक्लेशकी अपेक्षा पर्याप्तकालीन सर्वोत्कृष्ट संक्लेश अनन्तगुणा पाया जाता है ।
इस प्रकार स्थितिबन्धस्थान- प्ररूपणानुयोगद्वार समाप्त हुआ ।
निषेकप्ररूपणा में ये दो अनुयोगद्वार हैं— अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधा ॥ १०१ ॥ 'निषेचनं निषेकः ' इस निरुक्तिके अनुसार कर्मपरमाणुओंके स्कन्धोंके निक्षेपण करनेका नाम निषेक है। उसके दो अनुयोगद्वार हैं, क्योंकि, अनन्तर प्ररूपणा और
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