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________________ २२४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, ६१. कुदो ? विसोहि-संकिलेसवसेण अप्पिदहिदिबंधट्ठाणेहिंतो हेट्ठा उवरिं च संखेजगुणहिदिबंधहाणेसु वीचारुवलंभादो। एत्थ वि गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। सेसं सुगमं । असण्णिपंचिंदियअपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ ६१ ॥ को गुणगारो ? पलिदोक्मस्स असंखेजदि भागो । कारणं चिंतिय वत्तव्वं । असण्णिपंचिंदियपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ ६२ ॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदि भागो । कारणं सुगमं । सण्णिपंचिदियअपजत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥६३॥ जादिविसेसेण संखेजगुणट्ठिदिबंधट्ठाणेसु संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणं पि असंखेजगुणत्तं पडि विरोहाभावादो । सेसं सुगमं । सण्णिपंचिंदियपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि ॥ ६४ ॥ __ इसका कारण यह कि विशुद्धि और संक्लेशके वशसे विवक्षित स्थितिबन्धस्थानोंसे नीचे व ऊपर संख्यातगुणे स्थितिबन्धस्थानोंमें बीचार पाया जाता है। यहां भी गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। शेष कथन सुगम है। असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ६१ ॥ गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । कारण विचारकर कहना चाहिये। असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ६२॥ · गुणकार क्या है ? गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग हैं। कारण इसका सुगम है। संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ६३ ॥ क्योंकि, जातिभेदसे संख्यातगुणे स्थितिबन्धस्थानों में संक्लेश-विशुद्धिस्थानोंके असंख्यातगुणे होने में कोई विरोध नहीं है । शेष कथन सुगम है।। संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धिस्थान असंख्यातगुणे हैं ॥ ६४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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