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________________ ४, २, ६, ५२.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणपख्वणा [२१९ असंखेजदिभागो गुणगारो आगच्छदि बादराणमुवरिमगुणहाणिसलागाणं किंचूणण्णोण्णभत्थरासिं सुहुमअण्णोण्णभत्थरासिणा गुणिय ताए चेव रूवूणाए ओवट्टिदपमाणत्तादो । एदेण गुणगारेण सुहुमेइंदियअपजत्तयस्स संकिलेस-विसोहिहाणेसु गुणिदेसु बादरेइंदियअपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि होति । अधवा सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स हिदिबंधहाणपमाणेण सुहुमेइंदियजहण्णहिदिबंधहाणपमाणबादरेइंदियअपजत्तहिदिबंधट्ठाणप्पहुडि उवरिमट्ठाणेसु कदेसु संखेजगुणाणि हवंति । संपहि तत्थ पढमखंडस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि सुहमेइंदियअपजत्तयस्स संकिलेस-विसोहिहाणमेत्ताणि होति । एदासिमेगा गुणगारसलागा [१]। पुणो सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स अण्णोण्णब्भत्थरासिणा [४] सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणेसु गुणिदेसु बादरेइंदियअपज्जत्तयस्स बिदियखंडसंकिलेस-विसोहिहाणाणि हवंति । पुणो एदस्स वग्गेण गुणिदेसु तदियखंडस्स संकिलेस-विसोहिहाणाणि होति । पुणो एदस्स घणेण गुणिदेसु चउत्यखंडस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि होति । पुणो एदस्स वग्गवग्गेण गुणिदेसु पंचमखंडस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणि होति । एवं णेदव्वं जाव चरिमखंडे त्ति । सुहमेइंदियअपज्जत्तजहण्णहिदिबंधटाणादो हेहिमाणं बादरेइंदियअपज्जत्तयस्स संकिलेस-विसोहिट्ठाणाणं एगरूवस्स असंखेज्जदिभागो गुणगारो होदि, तेसिं सुहुमेइंदियअपज्जत्तसंकिलेसहाणाणमसंखेज्जदिभागत्तादो। एदाओ सव्वगुणगारसलागाओ भाग देनेपर पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार प्राप्त होता है, क्योंकि उसका प्रमाण बादर जीवोंकी उपरिम गुणहानिशलाकाओंकी कुछ कम अन्योन्याभ्यस्त राशिको सूक्ष्म एकेन्द्रियोंकी अन्योन्याम्यस्त राशिसे गुणित करके एक अंकसे कम उसीके द्वारा अपवर्तित करनेसे जो प्राप्त हो उतने मात्र है। इस गुणकारसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तके संक्लेशविशुद्धिस्थानोंको गुणित करनेपर बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तके संक्लेशविशुद्धिस्थान होते हैं - ____ अथवा, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तके जघन्य स्थितिबन्धस्थानोंके बराबर जो बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तके स्थितिबन्धस्थान हैं उनको आदि लेकर ऊपरके स्थानोंको सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तके स्थितिबन्धस्थानोंके प्रमाणसे करनेपर वे संख्यातगुणे होते हैं। अब उनमें जो प्रथम खण्डके संक्लेश-विशुद्धिस्थान सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके संक्लेशविशुद्धिस्थानोंके बराबर हैं, इनकी एक (१) गुणकारशलाका है। पुनः सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तककी अन्योन्याभ्यस्त राशि (४) से सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके संक्लेश। विशुद्धिस्थानोंको गुणित करनेपर बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके द्वितीय स्खण्ड सम्बन्धी संक्लेश-विशुद्धिस्थान होते हैं । पश्चात् उनको इसके वर्गसे गुणित करनेपर तृतीय खण्डके संक्लेश-विशुद्धिस्थान होते हैं। फिर इनके घनसे उनको गुणित करनेपर चतुर्थ खण्डके संक्लेश-विशुद्धिस्थान होते हैं । इसके वर्गके वर्गसे उनको गुणित करनेपर पांचवे खण्डके संक्लेश-विशुद्धिस्थान होते हैं । इस प्रकार अन्तिम खण्ड तक ले जाना चाहिये । सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्धस्थानसे नीचेके बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धिस्थानोंका गुणकार एक अंकका असंख्यातवां भाग होता है, क्योंकि, वे सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धिस्थानोंके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं । इन सब गुणकारशलाकाओंको मिलाकर उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके संक्लेश-विशुद्धि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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