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४, २, ६, ५२.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे ठिदिबंधट्ठाणपरूवणा [२११
(संपहि जदि वि असंखेजगुणत्तं बुद्धिमंताणं सिस्साणं सुगमं तो वि मंदमेहाविसिस्साणमणुग्गहहमसंखेजगुणत्तसाहणं वत्तइस्सामो) तं जहा-सुहुमेइंदियअपजत्तयस्स हिदिबंधट्ठाणाणं पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्ताणं संदिट्ठीए रचणा कायव्वा । पुणो एदेसिं हिदिबंधट्टाणाणं दक्खिणदिसाए बादरेइंदियअपजत्तहिदिबंधट्ठाणाणं रचणा कायव्वा । तत्थ बादरेइंदियअपजत्तहिदिबंधहाणे सुहमेइंदियअपज्जत्तहिदिबंधट्टाणाणि मोत्तण सेसहेहिमहिदिबंधट्ठाणाणि सुहुमेइंदियअपज्जत्तहिदिबंधट्ठाणेहिंतो संखेजगुणाणि सुहुमेइंदियअपजत्तविसोहीदो बादरेइंदियअपजत्तविसोहीए अणंतगुणत्तुवलंभादो। उवरिमहिदिबंधट्ठाणाणि तत्तो संखेजगुणाणि, सुहुमेइंदियअपज्जत्तउवकस्ससंकिलेसादो बादरेइंदियअपज्जत्त-उक्कस्ससंकिलेसस्स अणंतगुणत्तुवलंभादो । एवं च हिदहिदिबंधट्टाणेसु जहण्णद्विदिबंधट्ठाणमादि कादूण जावुक्कस्सहिदिबंधट्ठाणे त्ति ताव पादेक्कमसंखेजलोगमेत्तसंकिलेस-विसोहिहाणाणं
. अब यद्यपि बुद्धिमान् शिष्योंके लिये असंख्यातगुणत्वका जानना सुगम है, तथापि मन्दबुद्धि शिष्योंके अनुग्रहार्थ असंख्यातगुणत्वका साधन कहा जाता है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र स्थितिवन्ध स्थानोंकी संदृष्टिमें रचना करना चाहिये । पश्चात् इन स्थितिबन्धस्थानोंकी दक्षिण दिशामें बादर एकेन्द्रिय अपयौप्तकके स्थितिबन्ध स्थानोंकी रचना करना चाहिये। उनमें बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थानोंमेंसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थानोंको छोड़कर अवशिष्ट नीचेके स्थितिबन्धस्थान सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके स्थितिबन्धस्थानोंसे संख्यातगुणे हैं, क्योंकि, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकी विशुद्धिसे बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकी विशुद्धि अनन्तगुणी पायी जाती है। उनसे ऊपरके स्थितिबन्धस्थान संख्यातगुणे हैं, क्योंकि, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके उत्कृष्ट संक्लेशसे बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकका उत्कृष्ट संक्लेश अनन्तगुणा पाया जाता है । इस प्रकार अवस्थित स्थितिबन्धस्थानोंमें जघन्य स्थितिबन्धस्थानको आदि करके उत्कृष्ट स्थितिबन्धस्थान तक प्रत्येक स्थितिबन्धस्थानके
जघन्यस्थितिबन्धारम्मे यानि संक्लेशस्थानानि तेभ्यः समयाधिकजघन्यस्थितिबन्धारम्भे संक्लेशस्थानानि विशेषाधिकानि । तेभ्योऽपि द्विसमयाधिकजघन्य-स्थितिबन्धारम्भेऽपि विशेषाधिकानि । एवं तावद्वान्यं यावत्तस्यैवोत्कृष्टा स्थितिः । तदुत्कृष्टस्थितिबन्धारम्भे च संक्लेशस्थानानि जघन्यस्थितिसत्कसंक्लेशस्थानापेक्षयाऽसंख्येयगुणानि लभ्यन्ते । यदैतदेवं तदा सुतरामपर्याप्तबादरस्य संक्लेशस्थानानि अपर्याप्तसूक्ष्मसत्कसक्लेशस्थानापेक्षयाऽसंख्येयगुणानि भवन्ति । तथाहि-अपर्याप्तसूक्ष्मसत्कस्थितिस्थानापेक्षया बादरापर्याप्तस्य स्थितिस्थानानि संख्येयगुणानि । स्थितिस्थानवृद्धौ च संक्लेशस्थानवृद्धिः। ततो यदा सूक्ष्मापर्याप्तस्यापि स्थितिस्थानेष्वतिस्तोकेषु जघन्यस्थितिस्थानसस्कसंक्लेशस्थानापेक्षया उत्कृष्ट स्थितिस्थाने संक्लेशस्थानान्यसंख्येयगुणानि भवन्ति, तदा बादरापर्याप्तस्थितिस्थानेषु सूक्ष्मापर्याप्तस्थितिस्थानापेक्षयाsसंख्येयगुणेषु सुतरां भवन्ति । क. प्र. (मलय.) १,६८-६९.
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