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________________ १७८ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, ५०. सुहुमेइंदियअपजत्तयस्स आबाहट्ठाणविसेसो । आबाहाहाणाणि एगस्वेण विसेसाहियाणि । जहणिया आबाहा असंखेजगुणा । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । हिदिबंधट्ठाणविसेसो असंखेजगुणो । हिदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । जहण्णओ हिदिबंधो असंखेजगुणो। उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । एवं सुहुमेइंदियपज्जत्त-बादरेइंदियपजत्तापज्जत्ताणं च णेदव्वो। सव्वत्थोवो बेइंदियअपजत्तयस्स आबाहट्टाणविसेसो। आबाहाट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । जहणिया आबाहा संखेज्जगुणा । उक्कस्सिया आबाहा विसेसा हिया। द्विदिबंधट्टाणविसेसो असंखेजगुणो। हिदिबंधट्ठाणाणि एगरूवाहियाणि । जहण्णओ हिदिबंधो संखेजगुणो । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । एवं बेइंदियपजत्त-तेइंदियचउरिंदिय-असण्णिपंचिंदियपज्जत्तापजत्ताणं च णेदव्वं । .. सव्वत्थोवा सण्णिपंचिंदियअपज्जत्तयस्स जहणिया आबाहा । आबाहहाणविसेसो संखेजगुणो । आबाहाट्ठाणाणि एगवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सिया आबाहा विसेसाहिया । जहण्णओ हिदिबंधो असंखेजगुणो । हिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेजगुणो । हिदिबंधहाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । एवं सण्णिपजत्ताणं पिणेदव्वं । आवाधास्थानविशेष सबसे स्तोक है। आवाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । जघन्य आबाधा असंख्यातगुणी है। उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। स्थितिबन्धस्थान विशेष असंख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तों और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तों व अपर्याप्तोंके भी ले जाना चाहिये। द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके आवाधास्थानविशेष सबसे स्तोक है। आबाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। जघन्य अबाधा संख्यातगुणी है । उत्कृष्ट आवाधा विशेष अधिक है। स्थितिबन्धस्थानविशेष असंख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इसी प्रकार द्वीन्द्रिय पर्याप्तकों तथा त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय व असंही पंचेन्द्रिय पर्याप्तकों व अपर्याप्तकोंके भी ले जाना चाहिये। संशी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकके जघन्य आबाधा सबसे स्तोक है। आबाधास्थानविशेष संख्यातगुणा है। आवाधास्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उत्कृष्ट आबाधा विशेष अधिक है। जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है । स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इसी प्रकार संशी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंके भी जानना चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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