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________________ ४, २, ६, ५०.] वेयणयहा हियारे वेयणकाल विहाणे ठिदिबंधट्टाणपरूवणा [ १५९ साहिओ । तेइंदियपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तेइंदियअपजत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव उक्कस्सओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । तेइंदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ । तेइंदियपत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णो द्विदिबंधो विसेसाहिओ । तेइंदियअपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं उक्कस्सओ दिबंधो विसेसाहिओ । तेइंदियपजत्तयस्स चदुष्णं कम्माणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । बेइंदियपत्तयस्स मोहणीयस्स जहण्णओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । बेइंदियअपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स जहण्णओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपजत्तयस्स मोहणीयस्स उक्कस्सओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ । बेइंदियपजत्तयस्स मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । चउरिंदियपजत्तयस्स णामागोदाणं जहण्णओ ट्ठदिबंधो विसेसाहिओ । चदुरिंदियअपज्जत्तयस्स णामा - गोदाणं जहणओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपजत्तयस्स णामा-गोदाणं उक्कस्सओ ट्ठिदिबंधो विसेसाहिओ । चदुरिंदियपज्जत्तयस्य णामा-गोदाणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । सण्णिपंचिंदियपज्जत्तयस्स आउअस्स द्विदिबंधट्ठाणविसेसो विसेसाहिओ । द्विदिबंधद्वाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । चदुरिंदियपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ ट्ठट्टिबंधो विसेसाहिओ । विशेष अधिक है । त्रीन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । त्रीन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके उनका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । त्रीन्द्रिय पर्याप्तकके उनका उत्कष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । त्रीन्द्रिय पर्याप्तकके चार कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है | श्रीन्द्रिय अपर्याप्तकके चार कर्मोंका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके चार कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । त्रीन्द्रिय पर्याप्तकके चार कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । द्वीन्द्रिय पर्याप्तक के मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक के मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसके ही अपर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । द्वीन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । चतुरिन्द्रिय पर्याप्तककके नाम व गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त आयुका स्थितिबन्धस्थानविशेष विशेष अधिक है । स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं । उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक के are sir जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उसीके अपर्याप्तकके चार कर्मोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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