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________________ १५८ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६,५०. विसेसाहिओ। तस्सेव उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। बादरेइंदियअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। सुहुमेइंदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । बादरेइंदियपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। बादरेइंदियपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो । सुहुमेइंदियपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। बादरेइंदियअपज्जत्तयस्य मोहणीयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । सुहुमेइंदियअपज्जयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। बादरेइंदियअपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। सुहुमएइंदियपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। बादरेइंदियपज्जत्तयस्स मोहणीयस्स उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। बेइंदियपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो। तस्सेव अपज्जत्तयस्स गामा-गोदाणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव पज्जत्तयस्स णामा-गोदाणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। बेइंदियपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । बेइंदियअपजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। बेइंदियअपजत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसेसाहिओ । बेइंदियपज्जत्तयस्स चदुण्णं कम्माणं उक्कस्सओ हिदिबंधो विसे जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके उनका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके उनका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके उनका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके चार कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके मोहनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके उसका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके मोहनीयका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । द्वीन्द्रिय पर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । उसीके अपर्याप्तकके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके अपर्याप्तकके नाम घ गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उसीके पर्याप्तकके नाम व गोत्रका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। द्वीन्द्रिय पर्याप्तकके चार कर्मोंका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है । द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके चार कर्मीका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । द्वीन्द्रिय अपर्याप्तकके चार कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। द्वीन्द्रिय पर्याप्तकके चार कर्मोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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