SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, ५, ६, ५०.] श्रेयणमहाहियारे वैयणकालविहाणे सामित्त चरिंदियअपज्जतयस्स द्विदिबंधट्ठाणविसेसो संखेजगुणो । हिदिबंधहापाणि एगरूषण विसे. साहियाणि । तस्सेव पज्जत्तयस्स हिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो । हिदिबंधट्ठाणाणि एगस्वेण विसेसाहियाणि । असण्णिपंचिंदियअपज्जत्तयस्स हिदिबंधट्ठाणपिसेसो संखेज्जगुणो। हिदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । तस्सेव पज्जत्तयस्स हिदिबंधट्ठाणविसेसो संखेज्जगुणो । विदिबंधट्ठाणाणि एगरूवेण विसेसाहियाणि । बादरेइंदियपज्जतयस्स जहप्रणओ हिदिबंधो संखेज्जगुणो । सुहुमे इंदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। बादरेइंदियअपज्जत्तयस्स जहणणओ द्विदिबंधो विसेसाहिओ। सुहुमेइंदियअपज्जत्तयस्स जहण्णओ हिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव अपज्जत्तयस्म उक्कस्सओ विदिबंधो विसेसाहिओ। बादरेइंदियअपज्जत्तयस्स उक्कस्सहिदिबंधो विसेसाहिओ । सुहुमेइंदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सहिदिबंधो विसेसाहिओ। बादरेइंदियपज्जत्तयस्स उक्कस्सहिदिबंधो विसेसाहिओ। बेइंदियाज्जत्तयस्स जहण्गढिदिबंधो संखेज्जगुणो । तस्सेव अपज्जत्तयस्स जहण्णहिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव अपज्जत्तयस्स उक्कस्सहिदिबंधो विसेसाहिओ । तस्सेव पज्जत्तयस्स उक्कस्सटिदिबंधो विसेसाहिओ । तेइंदियपज्जत्तयस्स जहण्णद्विदिवंधो विसेसाहिओ । तस्सेव अपज्जत्तयस्स जहण्णहिदिबंधो विसेसाहिओ। तस्सेव अपज्जत विशेष अधिक हैं। उनसे चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तकका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। उससे उसके स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उनसे उसीके पर्याप्तका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। उससे उसीके स्थितिबम्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उनसे असंही पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकका स्थितिबन्धस्थान. विशेष संख्यातगुणा है। उससे उसीके स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उनसे उसीके पर्याप्तका स्थितिबन्धस्थानविशेष संख्यातगुणा है। उससे उसीके स्थितिबन्धस्थान एक रूपसे विशेष अधिक हैं। उनसे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उससे बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उससे उसीके अपर्याप्तका उत्कृष्ट स्थितिपन्ध विशेष अधिक है। उसले बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितियाध विशेष अधिक है। उसले सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे बादर पकेन्द्रिय पर्याप्तकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । उससे द्वीन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। उससे उसीके अपर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे उसीके अपर्याप्तकका उकृष्ट स्थितिबन्ध विशेष भधिक है। उससे उसीके पर्याप्तका उस्कृष्ठ स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे श्रीन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे उसीके अपर्याप्तका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे उसके अपर्याप्तका उका स्थितिबन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy