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________________ १, २, ६, १६.] वेयणमहाहियारे वेयणकालविहाणे सामित्त । १२१ पुणो अण्णो जीवो पुव्वविहाणेणागंतूण पुव्वणिरुद्धट्ठिदीए तदणंतरहेहिमखीणकसाई जादो । एदं सांतरमपुणरुत्तवाणं, पुव्विल्लट्ठाणं पेक्खिदूण अंतोमुहुत्तमेत्तहिदीहि अंतरिदणुप्पण्णत्तादो। तं कधं णव्वदे ? एत्थ चरिमद्विदिखंडयचरिमफालीए उवलंभादो, उवरिमहिदिम्मि तदणुवलंभादो । एत्तो प्पहुडि हेट्ठा समऊणुक्कीरणद्धामेत्तीणरंतरहाणेसु समुप्पण्णेसु सई सांतरट्ठाणमुप्पज्जदि। कुदो १ अप्पिद-अप्पिंदविदिखंडयस्स चरिमफालिमेत्तमंतरिदूणुप्पत्तीदो । एवमोदारेदव्वं जाव अणियट्टिअद्धाए संखेज्जदिभागो त्ति । तत्थतणअणियट्टिडिदिसंतादो बादरेइंदियपज्जत्तयस्स णाणावरणजहण्णहिदिसंतं विसेसाहियं पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण ।। पुणो एदमणियट्टिहिदिसंतं मोत्तूण बादरेइंदियपज्जत्तयस्स जहण्णढिदिसतं घेत्तूण समउत्तरं वड्ढिदूण पबद्धे णिरंतरमण्णमपुणरुत्तट्ठाणं उप्पज्जदि । पुणो एवं काए वड्डीए वडिदे ति उत्ते असंखेज्जभागवड्डीए । एदस्स वड्ढिदसमयस्स आगमणटुं को भागहारो। बादरेइंदियधुवहिदी । कुदो ? बादरेइंदियधुवटिदीए बादरेइंदियधुवहिदिमवहरिय लद्धमेग __ पश्चात् दूसरा एक जीव पूर्व विधिसे आकर पूर्वकी विवक्षित स्थितिसे तदनन्तर अधस्तन क्षीणकषायी हुआ । यह सान्तर अपुनरुक्त स्थान है, क्योंकि, पूर्वके स्थानकी अपेक्षा अन्तर्मुहूर्त मात्र स्थितियोंके अन्तरसे यह स्थान उत्पन्न हुआ है। शंका-वह कैसे जाना जाता है ? समाधान-क्योंकि, यहां अन्तिम स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालि पायी जाती है, परन्तु ऊपरकी स्थितिमें वह नहीं पायी जाती। । यहांसे प्रारम्भ होकर नीचे एक समय कम उत्कीरणकालके बराबर निरन्तर स्थानोंके उत्पन्न होनेपर एक वार सान्तर स्थान उत्पन्न होता है, क्योंकि, विवक्षित विवक्षित स्थितिकाण्डककी अन्तिम फालि प्रमाण अन्तर करके वह उत्पन्न हुआ है । इस प्रकार अनिवृत्तिकरणकालके संख्यातवें भाग तक उतारना चाहिये । वहाके अनिवृत्तिकरणके स्थितिसत्त्वसे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त जीवके शानावरणका जघन्य स्थितिसत्व पल्योपमके असंख्यातवें भागसे विशेष अधिक है। पुनः इस अनिवृत्तिकरण के स्थितिसत्त्वको छोड़कर और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तके जघन्य स्थितिसत्त्वको ग्रहण करके एक एक समय बढ़कर बांधनेपर दूसरा निरन्तर अपुनरुक्त स्थान उत्पन्न होता है। शंका-यह कौनसी वृद्धि द्वारा वृद्धिंगत हुआ है ? समाधान- वह असंख्यातभागवृद्धिके द्वारा वृद्धिंगत हुआ है। शंका-इस बढ़े हुए समयके निकालनेके लिये भागहार क्या है ? समाधान -इसके लिये भागहार बादर एकेन्द्रियको ध्रुवस्थिति है, क्योंकि, बादर एकेन्द्रियकी ध्रुवस्थितिका बादर एकेन्द्रियकी ध्रुवस्थितिमें भाग देनेपर जो एक .......... १ आप्रतो' अप्पिद-अणप्पिद' इति पाठः । छ..१-१६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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