SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, २, ६, ९. ] वैयणमहाहियारे वेयण कालविद्दाणे सामित [ ९९ [ चरिमसमए ] गलिदे एदमपुणरुत्तट्ठाणं होदि, चरिमफालीए पादिदाए पुग्विल्लजीवट्ठिदिसंतेण सेसट्ठिदिसंतं समाणं' होदूण पुणो उक्कीरणद्धाए चरिमसमए गलिदे तत्तो समऊणं होदिति । एदमत्थपदं उवरि सव्वत्थ वत्तव्वं । पुणो तत्तो तदियजीवेण बिदियट्ठिदिखंडयस्स पढमफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए पढमसमओ गलदि । गलिदे पुणरुतट्ठाणं होदि । बिदियफालीए अवणिदाए उक्की - रणद्धा बिदियसमओ गलदि । एदं पि पुणरुत्तट्ठाणं होदि । पुणो तदियफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए तदियसमओ गलदि । एदं पि पुणरुत्तट्ठाणं होदि । एवं समऊणुक्की - द्धमित्तफालीओ जाव पदंति ताव पुणरुत्तट्टाणाणि चैव उप्पज्जेति । पुणो एदेणेव चरमफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए चरिमसमओ गलदि । एदमपुणरुत्तट्ठाणं होदि । कुदो ? चरिमफालीए पदिदाए पुव्विल्लडिदिसंतकम्मेण सरिसत्तं पत्तस्स सेसट्ठिदिसंतकम्मस्से उक्कीरणद्धाए चरिमसमयगलणेण समऊणत्तंदसणादो | पुणो तत्तो चउत्थजीवेण बिदियट्ठिदिकंदयस्स पढमफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए पढमसमओ गलदि । बिदियफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए [ बिदियसमओ गलदि । पुणो तदियफालीए अवणिदाए उक्कीरणद्धाए ] तदियसमओ गलदि । एदं पि पुणरुत्तट्ठाणं होदि । गलने पर यह अपुनरुक्त स्थान होता है, क्योंकि, अन्तिम फालिके अलग होनेपर पूर्वोक्त जीवके स्थितिसरवसे शेष स्थितिसत्त्व समान हो करके पश्चात् उत्कीरणकालके अन्तिम समयके गलनेपर उससे एक समय कम हो जाता है । यह अर्थपद आगे सब जगह कहना चाहिये । तत्पश्चात् उससे तीसरे जीवके द्वारा द्वितीय स्थितिकाण्डककी प्रथम फालिके अलग किये जानेपर उत्कीरणकालका प्रथम समय गलता है । उसके गलनेपर पुनरुक्त स्थान होता है । द्वितीय फालिके नष्ट होनेपर उत्कीरणकालका द्वितीय समय गलता है । यह भी पुनरुक्क स्थान है । फिर तृतीय फालिके नष्ट होनेपर उत्कीरणकालका तृतीय समय गलता है । यह भी पुनरुक्त स्थान है। इस प्रकार जब तक एक समय कम उत्कीरणकाल प्रमाण फालियां पतित होती हैं तब तक पुनरुक्त स्थान ही उत्पन्न होते हैं । पश्चात् इसी जीवके द्वारा अन्तिम फालिके अलग किये जानेपर उत्कीरणकालका अन्तिम समय गलता है । यह अपुनरुक्त स्थान है, क्योंकि, अन्तिम फालिके पतित होने पर पहिले जीवके स्थितिसत्कर्मसे समानताको प्राप्त हुआ शेष स्थितिसत्कर्म उत्कीरणकालके अन्तिम समयके गलनेसे एक समय कम देखा जाता है । पुनः उसले चतुर्थ जीवके द्वारा द्वितीय स्थितिकाण्डककी प्रथम फालिके अलग किये जानेपर उत्कीरणकालका प्रथम समय गलता है । द्वितीय फालिके अलग किये जानेपर उत्कीरणकालका [ द्वितीय समय गलता है । पश्चात् तृतीय फालिके विघटित १ प्रतिषु 'सेसट्ठिीदसंतसमाणं ' इति पाठः । २ प्रति 'सरिसर्च पि तस्सेसद्विदि संत कम्मस्स ताप्रतौ 'सरिसर्च पञ्चसविदिसंतकम्मस्स ' इति पाठः । ● Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy