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________________ ८६) छक्खंडागमे वेयणाखंड जहण्णं । एवं सेसेसु वि णेयव्वं । तिपदेसोगाढदव्वं द ठूण दुपदसोगाढदव्वं खेत्तदो आदेसजहणं । एवं सेसेसु वि णेयव्वं । तिसमयपरिणदं दठूण दुसमयपरिणदं दव्वमादेसदो कालजहण्णं । एवं सेसेसु वि णेयव्वं । तिगुणपरिणदं दव्वं दठूग दुगुणपरिण ८व्वं भावदो आदेसजहणं । भावजण्णं दुविहं-- आगमभावजहष्ण गोआरममावजहण्णं चेदि । तत्थ जहण्णपाहुडजाणगो उवजुत्तो आगमभावजहणं । सुहुमणिगादलद्विअपज्जत्तयस्स जं सबजहणं णाणं तं णोआगमभावजहण्णं । एत्थ आघजह्मणकालेण पयदं, सव्वजहण्णट्ठिदीए अहियारादो। उक्कस्सं चउबिहं णाम हवणा-दब-भाव उक्करसभेषण । तत्थ णाम वणुक्क स्साणि सुगमाणि । दव्वुक्कस्सं दुविहमागमदवुक्करसं णोआगमदब्बुक्कसं चेदि। तत्थ उक्करसपाहुडजाणओ अणुवजुत्तो आगमदखुवकम्स । णोआगमदव्वुक्कस्सं तिविहं जाणुगसरीर-भविय-तव्वदिरित्तणोआगमदब्बुक्कस्सभेएण । जाणुगसरीर-भवियणोआगमदबुक्कस्साणि सुगमाणि । तव्वदिरित्तणोआगमदव्बुक्कस्सं दुविहं -- आघुक्कस्समादेसुक्कस्स चेदि । तत्थ आधुक्कस्सं चउविहं - दव्वदो खत्तदो कालदो भावदो चेदि । तत्थ दव्वदो उक्करं महाखंधो। खेत्तदो उक्कस्समागासं । कालदो उक्कस्सं सव्वकालो । भावदो उक्कस्सं .......................................... वाले स्कन्धकी अपेक्षा दो प्रदेशवाला स्कन्ध आदेशद्रव्यजघन्य है। इसी प्रकार शेष प्रदेशों में भी ले जाना चाहिये। तीन प्रदेशोंमें अवगाहन करनेवाले द्रव्यकी अपेक्षा दो प्रदेशों में अवगाहन करनेवाला द्रव्य क्षेत्रसे आदेशजघन्य है। इसी प्रकार शेष प्रदेशों में भी ले जाना चाहिये। तीन समयोंमें परिणत द्रव्य की अपेक्षा दो समयों में परिणत द्रव्य आदेशसे कालजघन्य है। इसी प्रकार शेष समयोंमें भी ले जाना चाहिये। तीन गुणोंमें परिणत द्रव्यकी अपेक्षा दो गुणोंमें परिणत द्रव्य भावसे आदेश जघन्य है । भावजघन्य दो प्रकार है- आगमभावजघन्य और नोआ मभावजघन्य । उनमें जघन्य प्राभृतका जानकार उपयोग युक्त जी आगराभव घन्य है । स्मृक्ष्म निगोट लब्ध्यपर्याप्तकका जो सबसे जघन्य ज्ञान है वह नो गम्भावजघन्य है। यहां ओघ जघन्यकाल प्रकृत है, क्योंकि, यहां सर्वजघन्य स्थितिका अधिकार है : नाम, स्थापना, द्रव्य और भाबके भेद से उत्कृष्ट चार प्रकार है। उनमें नापउत्कृष्ट और स्थापनाउत्कृष्ट सुगम हैं। द्रव्य उत्कृष्ट दो प्रकार है-आगभद्रक और नोआगमद्रव्य उत्कृष्ट । उनमें उत्कृष्ट प्राभुतका जानकार उपयोग रहित जत्र आगमद्रय उत्कृष्ट है । नोआगमद्रव्य उत्कृष्ट तीन प्रकार है- ज्ञायकशरीर, भावी तव्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यउत्कृष्ट । इनमें ज्ञायकशरीर और भावी नोआगमद्रव्य उत्कृष्ट सुगम हैं। तदव्यतिरिक्त नोआगमद्रव्य उत्कृष्ट दो प्रकार है-ओघ उत्कृष्ट और आदेशउत्कृष्ट । उनमें ओघउत्कृष्ट द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी अपेक्षा चार प्रकार है। उनमें द्रव्यकी अपेक्षा उत्कृष्ट महा स्कन्ध है। क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कृष्ट आकाश है। कालकी अपेक्षा उत्कृष्ट सर्व काल है । भावकी अपेक्षा उत्कृष्ट सर्वोत्कृष्ट वर्ण, गन्ध, रस भौर स्पर्शसे युक्त द्रव्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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