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________________ ४, २, ६, ६.1 वेयणमहाहियारे वैयणकालविहाणे पदमीमांसा एवं सत्तण्णं कम्माणं ॥५॥ जहा णाणावरणीयस्स पदभीमांसा कदा तहा सत्तण्णं कम्माण कायव्वा, विसेसा. भावादो । एवमंतोकयओजाणियोगद्दाग पदमीमांसा ति समत्तमणियोगद्दारं । सामित्तं दुविहं जहण्णपदे उक्कस्सपदे ॥ ६ ॥ तत्थ जहष्णं चउव्विहं- गाम कृवणा-दव्व-भावजहणं चेदि । णामजहण्णं हवणाजहण्णं च सुगमं । दवजहणं दुविहं --- आगमदव्वजहणं णोआगमदवजहण्णं चेदि । तत्थ जण्णपाहुडजाणओ अणुव जुतो आगमदव्वजहण्णं । आगमदव्वजहष्णं तिविहं जाणुगसरीर-भविय तवदिरित्तगोआगमदवजहण्णभेएण । जाणुगसरीरं भविय गदं। तब्बदिरित्तणोआगमदबजहण्णं दुविहं-- ओवजहण्णमादेसजहण्णं चेदि । तत्थ ओघजहण्णं चउविहं -- दवदो खेत्तदो कालदो भावदो चेदि । तत्थ दव्व जहण्णमेगो परमाणू । खेत्तजहण्णमेगो आगासपदेसो । कालजहणमेगो समओ । भावजण्णं परमाणुम्हि एगो णिद्धत्तगुणो । आदेसजहणं पिदव्व खेत काल-भावेहि चरविहं । तत्थ दव्वदो आदेस. जहणं उच्चदे । तं जहा- तिपदेसिगक्खधं दट्टण दुपदेसियक्खंधो आदेसदो दव्य. इसी प्रकार शेष सातों कोंके उत्कृष्ट सादि पदोंकी प्ररूपणा करना चाहिये ॥५॥ जिस प्रकार ज्ञानावरणकी पदमीमांसा की गई है उसी प्रकार शेष सात की पदमीमांसा करना चाहिये, क्योकि, उसमें कोई विशेपता नहीं है। इस प्रकार ओमानुयोगद्वारगर्भित पदमीमांसा नामक अनुयोगद्वार समाप्त हुआ। स्वामित्व दो प्रकार है-जघन्य पद में और उत्कृष्ट पदमें ॥ ६ ॥ उनसे अपन्य पद चार प्रकार है-नामजघन्य, स्थापनाजघन्य, द्रव्यजन्य और भावजघन्य। इनमें नामजघन्य और स्थापनाजघन्य सुगम हैं। द्रव्यजघन्य दो प्रकार है- आगमन्द्र-गाजघन्य और नोआगमद्रव्यजधन्य। उनमें जघन्य प्राभृतका जानकार उपयोग रहित जीव आगमद्रव्यजघन्य है । नोआगमद्रव्यजघन्य तीन प्रकार है- शायवशारीर नोआगमद्रव्यजघन्य, भावी नोआगमद्रव्यजघन्य और तद्व्यतिरिक्त नोआगमगव्य धन्य । इनमें बाराकशरीर और भावी नोआगमद्रव्यजघन्य विदित है। तदव्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यजघन्य दो प्रकार है ओजघन्य और आदेशजघन्य । उनमें द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी अपेक्षासे ओघजघन्य चार प्रकार है । इनमेंसे एक परमाणुको द्रव्यजघन्य कहा जाता है। एक आकाशप्रदेश क्षेत्रजघन्य है । कालजघन्य एक समय है । परमाणुमें रहनेवाला एक स्निग्धत्व गुण भावजघन्य है। आदेशजघन्य भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी अपेक्षा चार प्रकार है। इनमें द्रव्यसे आदेशजघन्य की प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है-तीन प्रदेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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