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________________ ८० छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ६, ४. कालवियप्पावहिदे अजहण्णे उक्कस्सस्स वि संभवादो । सिया सादिया, अणुक्कस्सकालादो उक्कस्सकालुप्पत्तीए । धुवपदं णत्थि, उक्कस्सहिदीए सव्वकालमवट्ठाणाभावादो। दन्वट्टियणए अवलंबिदे' वि ण धुवपदमस्थि, चदुसु वि गदीसु कयाई उक्कस्सपदस्स संभवादो। सिया अदुवा, उक्कस्सपदस्स सव्वकालमवट्ठाणाभावादो। सिया कदजुम्मा, उक्करसकालम्मि बादरजुम्म-कलि-तेजोजसंखाविसेसाणमभावादो। सिया णोम-णोमविसिट्ठा, वड्डिदे हाइदे च उक्कस्सत्तविरोहादो । एवमुक्कस्सणाणावरणीयवेयणा पंचपदप्पिया |५|| अणुक्करसणाणावरणीयवेयणा सिया जहण्णा, उक्करसं मोत्तूण हेट्ठिमसेसवियप्पे अणुक्कस्से जहण्णस्स वि संभवादो । सिया अजहण्णा, अणुक्कस्सस्स अजहण्णाविणाभावित्तादो । सिया सादिया, उक्कस्सादो अणुक्कस्सुप्पत्तीए अणुक्कस्सादो वि अणुक्कस्सविसेसुप्पत्तिदसणादो च । सिया अणादिया, दव्यट्टियणए अवलंबिदे अणुक्कस्सपदस्स बंधाभावादो । सिया धुवा, दव्वट्टियणए अवलंबिदे अणुक्कस्सपदस्स विणासाभावादो। सिया अधुवा, पज्जवट्ठियणए अवलंबिदे अणुषकस्सपदस्स धुवत्ताभावादो। सिया ओजा, कत्थ वि अणुक्कस्सपदविसेसे दुविहविसमसंखुवलंभादो । सिया जुम्मा, अणुक्कस्स .......................................... पद में उस्कृष्ट पद भी सम्भव है । कश्चंचित् वह सादि है, क्योंकि, अमुत्कृष्ट कालसे उत्कृष्ट काल उत्पन्न होता है । ध्रुव पद नहीं है, क्योंकि, उत्कृष्ट स्थितिका सब कालमें अवस्थान नहीं रहता। द्रव्यार्थिकनयका अवलम्बन करने पर भी ध्रुव पद सम्भव नहीं है, क्योंकि, चारों ही गतियोमें उत्कृष्ट पद कदाचित् ही सम्भव होता है । कथं. चित् वह अध्रुव है, क्योंकि, उत्कृष्ट पदका सब कालमै अवस्थान नहीं रहता । कथंचित् वह कृतयुग्म है, क्योंकि, उत्कृष्ट कालमें बादयुग्म, कलिओज और तेजोज संख्याविशेषोंका अभाव है। कथंचित् वह नोम-नोविशिष्ट है, क्योंकि, वृद्धि व हानिके होनेपर उत्कृष्टपनेका विरोध है । इस प्रकार उत्कृष्ट ज्ञानावरणीयवेदना पांच (५) पद रूप है। अनुत्कृष्ट ज्ञानावरणीयवेदना कथंचित् नघन्य है, क्योंकि, उत्कृष्टको छोड़कर अधस्तन समस्त विकल्पों रूप अनुत्कृष्ट पदमें जघन्य पद भी सम्भव है । कथंचित् वह अजघन्य है, क्योंकि, अनुत्कृष्ट पद अजघन्य पदका अविनाभावी है। कथंचित् वह सादि है, क्योंकि, उत्कृष्ट पदसे अनुत्कृष्ट पद उत्पन्न होता तथा अनुत्कृष्टसे भी अनुत्कृष्टविशेषकी उत्पत्ति देखी जाती है। कथंचित् यह अनादि है, क्योंकि, द्रव्यार्थिक नयका अवलम्बन करनेपर अनुत्कृष्ट पदका बन्ध नहीं होता । कथंचित् वह ध्रुव है, क्योंकि, द्रव्यार्थिक नयका अवलम्बन करनेपर अनुत्कृष्ट पदका विनाश नहीं होता । कथंचित् वह अध्रुव है, क्योंकि, पर्यायार्थिकनयका अवलम्बन करनेपर अनुत्कृष्ट पद ध्रुव नहीं है। कथंचित् वह ओज है, क्योंकि, किसी अनुत्कृष्ट पदविशेषमें दोनों प्रकारकी विषम संख्यायें देखी जाती हैं। कथांचित् वह युग्म है, क्योंकि, किसी अनुत्कृष्ट पदविशेषमें दोनों प्रकारकी १ प्रतिषु ' अवलंबिज्जदे' इति पाठः। २ प्रतिषु ' अशुक्कस्स ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001405
Book TitleShatkhandagama Pustak 11
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Balchandra Shastri, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1995
Total Pages410
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size10 MB
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