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________________ ७४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ४, २८. हाणिणा फलगुणिदिच्छाए अवहिरदाए सव्वगुणहाणिसलागाओ आगच्छंति । एदाओ दुगुणवड्डिसलागाओ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिमागमेत्ताओ । कुदो णव्वदे ? परमगुरूवदेसादो । एत्थ तिण्णि अणिओगद्दाराणि परूवणा पमाणं अप्पाबहुगं चेदि । परूवणा सुगमा । पमाणं-णाणागुणहाणिसलागाओ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ताओ। एगगुणहाणी सेडीएअसंखेज्जदिभागमेत्ता, णाणागुणहाणिसलागाहि जोगट्ठाणद्धाणे ओवट्टिदे तदुवलंभादो । __ अप्पाबहुगं- सव्वत्थोवाओ जवमज्झादो हेट्ठिमणाणागुणहाणिसलागाओ । उवरिमाओ राशिमें भाग देनेपर सब गुणहानिशलाकायें आती हैं । ये दुगुणवृद्धिशलाकायें पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र हैं। शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-परम गुरुके उपदेशसे जाना जाता है । विशेषार्थ-जहां परम्पराले हानि या वृद्धि प्राप्त की जाती है उसे परम्परोपनिधा कहते हैं। प्रकृतमें इसी बातका निर्देश किया गया है । पहले एक गुणहानिसे दूसरी गुणहानिमें जीवोंकी संख्या किस प्रकार दूनी दूनी होती जाती है, इसका निर्देश किया गया है और यादमें जीवयवमध्यसे लेकर वह संख्या प्रत्येक गुणहानिमें किस प्रकार आधी आधी होती गई है, यह बतलाया गया है और यहां परम्परासे हानि और वृद्धि के क्रमका निर्देश किया गया है। यहां तीन अनुयोगद्वार हैं-प्ररूपणा, प्रमाण और अल्पबहुत्व । प्ररूपणा सुगम है । प्रमाण- नानागुणहानि शलाकायें पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र हैं और एक गुणहानि जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र है, क्योंकि, नानागुणहानिशलाकाओंसे योगस्थानके भाजित करनेपर अध्वान जगश्रेणिका असंख्यातवां भाग प्राप्त होता है। अल्पबहुत्व- यवमध्यसे नीचेकी नानागुणहानिशलाकायें सबसे थोड़ी हैं । १ पल्लासंखेज्जदिमा गुणहाणिसला हवंति इगिठाणे । गो. क. २२४. णाणागुणहाणिसला छेदासखेज्जभागमेत्ताओ । गो. क. २४८. २ ... पदेसगुणहाणी । सेढिअसंखेज्जदिमा... ॥ गो. क. २२७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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