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________________ ५८ ] छक्खंडागमे बेयणाखंड [ ४, २, ४, २८. गारेण इदे सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्तो जोगट्ठाणायामो होदि । तत्थ सव्वजहण्णपरिणाम - जोगडाणमादिं कादूण उवरि सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्तजोगंट्ठाणाणि चदुसमयपाओग्गाणि । तदो उवरि सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्तजोगट्ठाणाणि पंचसमयपाओग्गाणि । एवं परिवाडीए उवरि पुध पुध छ-सत्त- अट्ठसमयपाओग्गाणि जोगट्ठाणाणि सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि । तो उवरि जहाकमेण सत्त-छं- पंच-चदु-ति-दुसमयपाओग्गाणि जे गट्ठाणाणि सेढीए असंखेज्जदिभागमेत्ताणि । एत्थ अट्ठसमय पाओग्गजोगट्ठाणाणि थोवाणि । दोसु वि पासेसु सत्तसमयपाओग्गजोगट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । दोसु वि पासेसु छसमयपाओग्गाणि जोगट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । दोसु वि पासेसु पंचसमयपाओग्गाणि जोगट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । दोसु वि पासेसु चदुसमयपाओग्गाणि जोगट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । उवरि तिसमयपाओग्गजोगट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । बिसमयपाओग्गाणि जोगट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । गुणगारो सव्वत्थ पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । सब योगस्थानोंका आयाम जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग प्रमाण प्राप्त होता है । उनमें से सबसे जघन्य परिणाम योगस्थान से लेकर आगे के जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र योगस्थान चार समय प्रायोग्य हैं । फिर इससे आगे जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र योगस्थान पांच समय प्रायोग्य हैं । इस प्रकार परिपाटी क्रमसे आगे के पृथक् पृथक् छह सात व आठ समय प्रायोग्य योगस्थान प्रत्येक जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र हैं। फिर इससे आगे यथाक्रमसे सात, छह, पांच, चार, तीन व दो समय प्रायोग्य योगस्थान प्रत्येक जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र हैं । यहां आठ समय प्रायोग्य योगस्थान थोड़े हैं। दोनों ही पार्श्वभागों में स्थित सात समय प्रायोग्य, योगस्थान असंख्यातगुणे हैं। दोनों ही पार्श्वभागों में स्थित छह समय प्रायोग्य योगस्थान असंख्यातगुणे हैं । दोनों ही पार्श्वभागों में स्थित पांच समय प्रायोग्य योगस्थान असंख्यातगुणे हैं । दोनों ही पार्श्वभागों में स्थित चार समय प्रायोग्य योगस्थान असंख्यातगुणे हैं। ऊपर तीन समय प्रायोग्य योगस्थान असंख्यातगुणे हैं । दो समय प्रायोग्य योगस्थान असंख्यातगुणे हैं । गुणकार सर्वत्र पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । १ प्रतिषु 'जहाकमेण सव्वत्थ पंच- ' इति पाठः । २ अट्ठसमयस्स थोवा उभयदिसासु वि असंखसमुणिदा । चउसमयो त्ति तहेव य उबरिं ति-समयजोग्गाओ ॥ गो. क्र. २४३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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