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________________ ५. छपखंडागमे वेयणाखंड [ १, २, ४, २२. तेणेव पढमसमयआहारएण पढमसमयतब्भवत्थेण उक्कस्सेण जोगेण आहारिदो ॥ २२ ॥ पढमसमयतब्भवत्थस्स णिद्देसो बिदिय-तदिय समयतब्भवत्थपडिसेहफलो । जहण्णउववादजोगादिपडिसेहफलो उक्कस्सजोगणिद्देसो । कतारे एसा तइया । तेण आहारिदो पोग्गलक्खंधो त्ति संबंधो काययो । एत्थ 'इन' सदो उपमहो । जहा कम्महिदीए एसो जीवो पढमसमयआहारओ पढयममयतब्भवत्थो च, विग्गहगदीए अभावादो । तहा एत्थ वि । तेण सिद्धं तेग पढमसमयआहारएण पढम समयतब्भवत्येण उक्कस्सजोगेणेव आहारिदो, कम्मपोग्गलो गहिदो त्ति उत्तं हेोदि । उक्कस्सियाए वढिए वढिदो ॥ २३ ॥ बिदियसमयप्पहुडि एयंताणुवड्डिजोगो होदि, समयं पडि असंखेज्जगुणाए सेडीए प्रथम समयमें आहारक और प्रथम समयमें तद्भवस्थ होकर उसने उत्कृष्ट योगके द्वारा कर्मपुद्गलको ग्रहण किया ।। २२ ॥ 'प्रथम समय तद्भवस्थ' पदके निर्देश का फल द्वितीय व तृतीय समय तद्भवस्थका प्रतिषेध करना है । जघन्य उपपाद योग आदिका प्रतिषेध करने के लिये 'उत्कृष्ट योग' पदका निर्देश किया है । कर्ता कारकमें यह तृतीया विभक्ति है।' उसने पुदगलस्कन्धको ग्रहण किया' ऐसा यहां सम्बन्ध करना चाहिये। यहां सूत्र में 'इव' शब्द उपमार्थक है। आशय यह है कि जिस प्रकार कर्मस्थितिके भीतर सर्वत्र यह जीव प्रथम समयमें आहारक होता है और प्रथम समयमें तद्भवस्थ होता है, क्योंकि, इसके विग्रहगति नहीं होती। उसी प्रकार यहां नरकगतिमें भी जानना चाहिये । इससे सिद्ध हुआ कि प्रथम समयमें आहारक और प्रथम समयमै तद्भवस्थ जीवने उत्कृष्ट योगके द्वारा ही आहरण किया, अर्थात् कर्मपुद्लको ग्रहण किया; यह उक्त कथनका तात्पर्य है। उत्कृष्ट वृद्धिसे वृद्धिको प्राप्त हुआ ॥ २३॥ उत्पन्न होनेके द्वितीय समयसे लेकर एकान्तानुवृद्धि योग होता है, क्योंकि, प्रत्येक १ क.प्र.२,७६. २ प्रतिषु · विल्ले तेण ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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