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१, २, ४, २०.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं
[५१ एदेण आउवावासो परूविदो । सेसं सुगमं ।
उवरिल्लीणं ट्ठिदीणं णिसेयस्स उक्कस्सपदे हेट्ठिल्लीणं ट्ठिदीणं णिसेयस्स जहण्णपदे ॥ १८ ॥
एदेण ओकड्डुक्कड्णावासो परूविदो ओकड्डुक्कडूडणा-बंधाणं पदेसविण्णासावासो वा । सेसं सुगमं ।।
बहुसो बहुसो उक्कस्साणि जोगहाणाणि गच्छदि ॥ १९ ॥ एदेण जोगावासो परूविदो । सेसं सुगमं । बहुसो बहुसो बहुसंकिलेसपरिणामो भवदि ॥ २० ॥
एदेण संकिलेसावासो परूविदो । संकिलेसावासो पदेसविण्णासावासे किण्ण पददे ? ण' संकिलेसो पदेसविण्णासस्स कारण, किंतु गुणिदकम्मंसियत्तं तक्कारणं; तेण ण तत्थ पददे।
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इस सूत्र द्वारा आयुआवासकी प्ररूपणा की गई है। शेष कथन सुगम है।
उपरिम स्थितियोंके निषेकका उत्कृष्ट पद होता है और नाचेकी स्थितियोंके निषेकका जघन्य पद होता है ॥ १८॥
इस सूत्र द्वारा अपकर्षण उत्कर्षणआवासका कथन किया गया है। अथवा अपकर्षण, उत्कर्षण और बंधके प्रदेशविन्यासावासका कथन किया गया है। शेष कथन सुगम है।
बहुत बहुत बार उत्कृष्ट योगस्थानोंको प्राप्त होता है ॥ १९ । इसके द्वारा योगावासकी प्ररूपणा की गई है। शेष कथन सुगम है। बहुत बहुत बार बहुत संक्लेश परिणामवाला होता है ॥ २० ॥ इसके द्वारा संक्लेशावासकी प्ररूपणा की गई है। शंका-संक्लेशावासका प्रदेशविन्यासावासमें अन्तर्भाव क्यों नहीं किया गया है।
समाधान-संक्लेश प्रदेशविन्यासका कारण नहीं है, किन्तु गुणितकोशिकत्व उसका कारण है । इस कारण उसका प्रदेशविन्यासावासमें अन्तर्भाव नहीं किया है।
१ प्रतिषु · किण्ण पदे ण ' इति पाठः।
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