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छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, १५. तस्थ य संसरमाणस्स बहुआ पज्जत्तभवा, थोवा अपज्जतभवा ॥१५॥
एदेण भवावासो परूविदो । एदस्सत्थो पुव्वं व परूवेदव्वो। एइंदिएसु परूविदाणं छण्णमावासयाण' पुणो परूवणा किम कारदे ? एइंदियेसु परूविदछावासया' चेव तसकाइएसु वि होति णो अण्णे इदि जाणावणहूँ ।
दीहाओ पज्जत्तद्धाओ रहस्साओ अपज्जत्तद्धाओ ॥ १६ ॥ एदेण अद्धावासो परूविदो १ सेसं सुममं ।
जदा जदा आउगं बंधदि तदा तदा तप्पाओग्गजहण्णएण जोगेण बंधदि ॥ १७॥
वहां पारभ्रमण करनेवाले उक्त जीवके पर्याप्तभव बहुत होते हैं और अपर्याप्तभव थोड़े होते हैं ॥ १५॥
___ इस सूत्र द्वारा भवावासकी प्ररूपणा की गई है । इसका अर्थ पूर्व (सूत्र ७) के समान कहना चाहिये।
शंका-एकेन्द्रियोंके कहे गये छह आवासोंका यहां फिरसे कथन किसलिये किया जाता है ?
समाधान- एकेन्द्रियों में जो छह आवास कहे हैं वे ही प्रसकायिकोंमें भी होते हैं, भन्य नहीं; इस बातका ज्ञान करानेके लिये यहां फिरसे उनका कथन किया है।
पर्याप्तकाल दीर्घ होता है और अपर्याप्तकाल थोड़ा होता है ॥ १६ ॥ इस भूत्र द्वारा अद्धावासकी प्ररूपणा की गई है। शेष कथन सुगम है। जब जब आयुको बांधता है तब तब उसके योग्य जघन्य योगसे बांधता है॥१०॥
१ आवासाया हु भवअद्धाउस्सं जोगसंकिलेसो य । ओकड्डुक्कतणया छच्चेदे गुणिदकम्मंसे ॥ गो.जी. २५०.
२ प्रतिषु "-परविदत्थावासया- ' इति पाठः।
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