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2.] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, २, ४, ११. सट्ठसहिमत्तियं Ist | अट्ठविहबंधगस्स णाणावरणेण लद्धदव्वं छस्सदबाहत्तरिमेत्तं, पुग्विल्लनव्वस्स अट्ठमभागक्खयादो । ६७२ | । हाणिपमाणं छण्णउदी |९६ ।। जहण्णजोगदव्वम्मि सत्तं बंधमाणस्स पायावरणभागो चउबीस | २४ । अटुं बंधमाणस्स णाणावरणभागो एक्कबीस | २१ ], पुव्वदव्वस्स अट्ठमभागाभावादो। दोण्णमंतरं तिण्णि । एदमुक्कस्सदव्वस्स लद्धंतरम्मि सोहिदे संदिट्ठीए तिणउदी णाणावरणक्खओ होदि । ९३ | । रूऊणुक्कस्सजोगगुणगारेण जहण्णजोगदव्वक्खए गुणिदे जो रासी उप्पज्जदि, जोगं पडि एत्तियमेतदव्यपरिरक्खणहमाउअं जहण्णजोगेण बंधाविदं । एदमपवादसुत्तं । तेण बहुसो बहुसो उक्कस्साणि जोगवणाणि गच्छदि त्ति एदस्स उस्सग्गसुत्तस्स बाहयं होदि । आउअबंधकालं मोत्तण अण्णत्थ तं पयदि त्ति उत्तं होहि ।
___उवरिल्लीणं ठिदीणं णिसेयस्स उक्कस्सपदे हेडिल्लीणं द्विदीणं णिसेयस्स जहण्णपदे ॥ ११ ॥
७६८].मात्र है। आठ कौको बांधनेवालेके ज्ञानावरण द्वारा प्राप्त द्रव्य छह सौ बहत्तर [५३७६:८६७२] मात्र है, क्योंकि, यहां पूर्वके प्राप्त द्रव्यके आठवें भाग [ ७ ६ ८ ] का क्षय है। हानिका प्रमाण छयानबै [७६८-६७२-९६] है। जघन्य-योग सम्बन्धी द्रव्यके रहते हुए सातको बांधनेवालेके ज्ञानावरणका भाग चौबीस [१६८:२४ ) है । आठको बांधनेवालेके ज्ञानावरणका भाग इक्कीस [१६८:८२१] है, क्योंकि, यहां पूर्व द्रव्यके आठवें भाग [ २ ] का अभाव है। दोनोंका अन्तर तीन है । इसको उत्कृष्ट द्रव्यके प्राप्त हुए. अन्तरमेंसे घटा देनेपर अंक संदृष्टिकी अपेक्षा तेरानबै अंक प्रमाण ९६-३-९३] शानावरणका क्षय होता है। एक कम उत्कृष्ट योगके गुणकारसे जघन्य योगके द्रव्यके क्षयको गुणित करनेपर जो राशि उत्पन्न होती है।(३२ - १)- ३ = ९३ योगके प्रति इतने मात्र द्रव्यके रक्षणार्थ आयुको जघन्य योग द्वारा बंधाया है ।
यह अपवादसूत्र है । इसलिये ' बहुत बहुत बार उत्कृष्ट योगस्थानोंको प्राप्त होता है' इस उत्सर्गसूत्रका वह बाधक है । आयुके बन्धकालको छोड़कर अन्यत्र वह सूत्र प्रकृत होता है, यह फलितार्थ है।
उपरिम स्थितियोंके निषेकका उत्कृष्ट पद होता है। और अधस्तन स्थितियों के निषेकका जघन्य पद होता है ॥११॥
१क.प्र. २-७५.
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