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४, २, ४, १०.]
वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे पदमीमांसा
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जोगग्गहणङ्कं च तप्पा ओग्गजहण्णजोगग्गहणं कदं । कम्मट्ठिदिपढमसमयप्पहुडि जाव तिस्से चरिमसमओ त्ति ताव गुणिदकम्मंसियपाओग्गाण जोगट्टाणाणं' पंतीए देसादिनियमेणाafgare खग्गधारा सरिसीए जहण्णुक्कस्सजोगा' अस्थि । तत्थ आउअबंधपाओग्गजहण्णजोगेहि चैव आउअं बंधदि त्ति उत्तं होदि ।
किम जहण्णजोगेण चेव आउअं बंधाविज्जदे ? णाणावरणस्स उक्कस्ससंचय, ण अण्णा उक्कस्ससंचओ । कुदो ? उक्कस्सजोगकाले आउए बंधाविदे जहण्णजोगेण आउअं बंधमाणस्स णाणावरणक्खयादो असंखेज्जगुणदव्वक्खयदंसणादो । एदमत्थं संदिट्ठीए जाणावेमो - एत्थ ताव छसत्तट्ठ रासीओ तिण्णि वि ओहट्टाविय एगरूवावसेसे सव्वभागहारणमण्णोष्णमासे कदे णिरुद्धरासी उप्पज्जदि । तिस्से पमाणमसट्ठियं । १६८ । । एदं संदिट्ठीए जहण्णजोगागददव्वं बत्तीसरूवेहि | ३२ | उक्कस्सजोगगुणगारो त्ति कप्पिदेहि गुणिदे उक्कस्तदव्वं तेवण्णं छहत्तरिमोत्तियं' होदि | ५३७६ | | एत्थ सत्तविधबंधगस्स णाणावरणेण बद्धदव्वं सत्त
योग्य जघन्य योगका ग्रहण किया है । कर्मस्थितिके प्रथम समयसे लेकर उसके अन्तिम समय तक गुणितकर्माशिक जीवके योग्य योगस्थानोंकी देशादिके नियमसे खङ्गधाराके समान एक पंक्ति में अवस्थित जघन्य व उत्कृष्ट दोनों प्रकारके योग पाये जाते है । उनमें से आयुबन्धके योग्य जघन्य योगसे ही आयुको बांधता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
शंका - जघन्य योगसे ही आयुका बन्ध क्यों कराया जाता है ?
समाधान -ज्ञानावरणकर्मका उत्कृष्ट संचय करानेके लिये जघन्य योगसे ही आयुका बन्ध कराया जाता है, अन्यथा उत्कृष्ट संचय नहीं हो सकता । कारण कि उत्कृष्ट योगके काल में आयुके बंधानेपर, जघन्य योगसे आयुको बांधनेवालेके ज्ञानावरणद्रव्यका जो क्षय होता है उससे, असंख्यातगुणे द्रव्यका क्षय देखा जाता है । इसी अर्थको संदृष्टि द्वारा जतलाते हैं- यहां छह, सात व आठ राशियां हैं, इन तीनोंको ही अपवर्तित कर एक रूपके शेष होनेपर समस्त भागहारोंका परस्पर गुणा करनेपर विवक्षित राशि उत्पन्न होती है । उसका प्रमाण एक सौ अडसठ है | १६८ | | यह संदृष्टिमें जघन्य योग से प्राप्त द्रव्य है । इसे उत्कृष्ट गुणकार रूपसे कल्पित बत्तीस | ३२ | रूपों से गुणित करनेपर उत्कृष्ट द्रव्य तिरेपन सौ छयत्तर [ १६८ x ३२ = ५३७६ ] होता है। यहां [ आयुके बिना ] सात कमको बांधनेवालेके ज्ञानावरण द्वारा प्राप्त द्रव्य सात सौ अड़सठ [ ५३७६÷७=
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१ प्रतिषु ' जोगट्ठाण ' इति पाठः । ३ प्रतिषु 'छाहचरिवेत्तियं' इति पाठः ।
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२ प्रतिषु ' जोगो' इति पाठः ।
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