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५१.)
छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, २१३. . सिद्धं । एवं सेसकम्माणं पि वत्तव्वं । णवरि आउअस्स पयडिविसेसेण विसेसाहियत्तं पत्थि, अट्ठविहबंधगं मोतूण अण्णत्थ तस्स बंधाभावादो । . मोहणीयस्स पुण छविहबंधगेण सण्णिकासो णत्थि त्ति सत्तट्ठविहबंधगाणं सण्णिकासे कीरमाणे अपुणरुत्तपदेसबंधट्ठाणाणि जोगट्ठाणेहिंतो विसेसाहियाणि |१|| सुत्ते पुण. एसो विसेसो ण परूविदो । सव्वकम्माणं पि पयडिविसेसेण पदेसबंध- ट्ठाणाणि विसेसाहियाणि त्ति वुत्तं कधं घडदे ? ण, संखज्जगुणे वि विसेसाहियतं पडि विरोहाभावादो। ण आउएण विअहिचारो, पाधण्णफलावलंबणादो । अधवा एसत्यो ण एदस्स सुत्तस्स होदि, सबाहत्तादो । कधं सबाहत्तं ? पयडिविसेसो णाम पयडिसहाओ | ण तस्स पयडिसण्णिकासववएसो अस्थि, अण्णत्थ तहाणुवलंभादो । पयडिसण्णिकासे कीरमाणे वि जोगट्ठाणेहिंतो ण सव्वकम्मपदेसबंधहागाणं सादिरेयत्तमत्थि, मोहणीयं मोतूण अण्णत्थ तदणुवलंभादो। तदो एवमेदस्स अत्थो घेत्तयो- तम्हा जाणि चेव जोगहाणाणि ताणि चेव
कहना चाहिये। विशेष इतना है कि प्रकृतिविशेषसे आयुके विशेष अधिकता नहीं है, क्योंकि, अष्टविध बन्धकको छोड़कर अन्यत्र उसके बन्धका अभाव है।
परन्तु मोहनीय कर्मके पविध बन्धकके साथ चूंकि समानता नहीं है, अतः सप्तविध और अष्टविध बन्धकोंकी समानता करते समय अपुनरुक्त प्रदेशबन्धस्थान योगस्थानोंसे विशेष (१४ ) अधिक है । परन्तु सूत्र में यह विशेषता नहीं बतलाई गई है।
शंका-सब कर्मों के भी प्रदेशबन्धनस्थान प्रकृतिविशेषले विशेष अधिक हैं, यह कथन कैसे घटित होता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, संख्यातगुणितमें भी विशेष अधिकताके प्रति कोई विरोध नहीं है । आयु कर्मसे व्यभिचार आता हो, सो भी बात नहीं है, क्योंकि, यहां प्रधान रूपसे फलका अवलम्बन किया है। अथवा यह अर्थ इस सूत्रका नहीं है, क्योंकि, वह बाधायुक्त है।
शंका- वह बाधित कैसे है ?
समाधान- प्रकृतिविशेषका अर्थ प्रकृतिस्वभाव है। उसकी प्रकृतिसन्निकर्ष संज्ञा नहीं है, क्योंकि, दूसरी जगह वैसा पाया नहीं जाता । प्रकृतिसन्निकर्ष करने पर भी योगस्थानोंकी अपेक्षा सब कर्मप्रदेशबन्धस्थानोंके साधिकता नहीं बनती, क्योंकि, मोहनीयको छोड़कर अन्य कर्मों में वह पायी नहीं जाती।
___इस कारण इस सूत्रका अर्थ इस प्रकार ग्रहण करना चाहिये- अत एव 'जाणि चेव जोगट्टाणाणि ताणि चेव पदेसबंधट्ठाणाणि' ऐसा कहनेपर योगस्थानोले
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, अ-आ-काप्रतिषु ' पावण्ण ' इति पाठः २ मप्रतिपाठोऽयम् , प्रतिषु ' एदस्पत्यो इति पाठः ।
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