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छपखंडागमे वेयणाखंड
णाणावर
उक्कस्सपदे जंट्ठियं सामित्तं तेण अणुगमं णाणावरणीयस्स कस्सामोणीयवेयणावयणं सेसवेयणापडिसहफलं । दव्वदो त्ति णिसो खेत्तादिपडिसेहफलो । उक्कस्सणिद्दसा जहण्णादिपडिसेहफलो । एदमाएंकियसुत्तं, पुच्छाए कारणाभावादो ।
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[ ४,
जो जीवो बादरपुढवीजीवेसु बेसागरोवमसहस्सेहि सादिरेगेहि ऊणियं कम्मद्विदिमच्छिदों ॥ ७ ॥
२, ४, ७.
जीवो चेव उक्कस्सदव्वसामी होदि त्ति कथं णव्वदे ? ण, मिच्छत्तासंजम कसायजोगाणं कम्मासवाणमण्णत्थाभावाद। । तेण जो जीवो त्ति जीवो विसेसियं कदा । उवरि उच्चमाणाणि सव्वाणि विसेसणाणि । बादरपुढवी दुविहा जीवाजीवभेएण । तत्थ बादरपुढवीजीवेसु अंतोमुहुत्तूणतसठिदीए ऊणियं कम्मट्ठिदिमच्छिदो जीवो सो उक्कस्सदव्वसामी होदि । कुदो ? सुहुमेइंदियजोगादो बादरेइंदियजोगस्स असंखेज्जगुणत्तुवलंभादो । आउकाइय
उत्कृष्टपद में जो स्वामित्व स्थित है उसके साथ ज्ञानावरणका अनुगम करतें हैं'ज्ञानावरणीय वेदना' इस वचनका फल शेष वेदनाओंका प्रतिषेध करना है । ' द्रव्यसे ' इस निर्देशका फल क्षेत्रादिका प्रतिषेध करना है । ' उत्कृष्ट ' पदके निर्देशका फल जघन्य आदिका प्रतिषेध करना है । यह आशंकासूत्र है, क्योंकि, यहां पृच्छाका कोई कारण नहीं है ।
जो जीव बादर पृथिवीकायिक जीवों में कुछ अधिक दो हजार सागरोपमसे कम कर्मस्थिति प्रमाण काल तक रहा हो ॥ ७ ॥
शंका - जीव ही उत्कृष्ट द्रव्यका स्वामी होता है यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान -- नहीं, क्योंकि मिथ्यात्व, असंयम, कषाय और योग रूप कर्मोंके आस्रव अन्यत्र नहीं पाये जाते । इसीलिये ' जो जीव ' इस प्रकार जीवको विशेष्य किया है और आगे कहे जानेवाले सब इसके विशेषण हैं ।
बादर पृथिवी जीव और अजीवके भेदसे दो प्रकारकी है । उनमेंसे बादर पृथिवीकायिक जीवों में अन्तर्मुहूर्त कम त्रसस्थिति से हीन कर्मस्थति प्रमाण काल तक जो जीव रहा है वह उत्कृष्ट द्रव्यका स्वामी होता है, क्योंकि, सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके योगसे बादर एकेन्द्रियका योग असंख्यातगुणा पाया जाता है ।
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१ जो बायरत सकालेणूणं कम्मट्ठिई तु पुढबीए। बायर [ रि ] पज्जतापज्जत्तगदीहेयरद्धासु ॥ जोगकसाउ कोसो बहुसो णिच्चमवि आउबंधं च । जोगजहणणेणुवरिल्लट्ठिइनिसेगं बहु किच्चा ॥ कर्म प्रकृति २, ७४-७५. २ प्रतिषु ' अंतोहुतूतस्सठिदीए ' इति पाठः ।
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