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४, २, ४, ७.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे पदमीमांसा आदिबादरजीवे परिहरिदूण बादरपुढवीकाइएसु किमर्से हिंडाविदो ? ण, उववादएयंताणुवड्डिजोगे परिहरिदूण पुढवीकाइएसु देसूणबावीसवाससहस्साणि परिणामजोगेहि सह पाएण अवठ्ठाणुवलंभादो । दसवाससहस्सेहितो अहियाउअपुढवीकाइएसु बहुवार हिंडाविय तत्थुप्पत्तीए संभवाभावे सत्त-तिषिण-दसवाससहस्साउअ-आउकाइय-वाउकाइय-वणप्फदिकाइएसु किण्ण उप्पाइदो ? ण, तेसिं पज्जत्तापज्जत्तजोगादो पुढवीकाइयपज्जत्तापज्जत्तजोगस्स असंखेज्जगुणत्तादो । तं कुदो णव्वदे १ बादरपुढवीकाइएसु चेव अच्छिदो त्ति णियमण्णहाणुववत्तीदो । अहवा पहाणणिद्देसोयं तेण अण्णत्थ वि समयाविरोहेणच्छिदो त्ति दट्ठव्वं । बादरपुढविकाइएसु
शंका-अप्कायिक आदि बादर जीवोंका परिहार करके बादर पृथिवीकायिक जीवों में किस लिये घुमाया है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, उपपाद और एकान्तानुवृद्धि योगोंको छोड़कर पृथिवीकायिकोंमें कुछ कम बाईस हजार वर्ष तक परिणामयोगोंके साथ प्रायः अवस्थान पाया जाता है । आशय यह है कि अन्य एकेन्द्रिय कायवालोंकी अपेक्षा पृथिवीकायिक जीवोंकी स्थिति अधिक होती है, इसलिये वहां अधिक काल तक परिणाम योगस्थान सम्भव है। इसीसे इस जीवको अन्य एकेन्द्रिय कायवालोमें न घुमाकर पृथिवी कायिक जीवों में घुमाया है।
शंका - दस हजार वर्षोंसे अधिक आयुवाले पृथिवीकायिकोंमें बहुत बार घुमाकर जब वहां पुनः उत्पन्न कराना सम्भव न हो तब सात हजार, तीन हजार व दस हजार वर्षकी आयुवाले अप्कायिक, वायुकायिक व वनस्पतिकायिक जीवों में क्यों नहीं उत्पन्न कराया?
समाधान -नहीं, क्योंकि उनके पर्याप्त व अपर्याप्त योगसे पृथिवीकायिक जीवोंका पर्याप्त व अपर्याप्त योग असंख्यातगुणा है ।
शंका-यह किस प्रमाणसे जाना ?
समाधान- बादर पृथिवीकायिकोंमें ही रहा ' यह नियम अन्यथा बन नहीं सकता, इससे जाना है कि अप्कायिकादिकोंके पर्याप्त व अपर्याप्त योगसे पृथिवीकायिकोंका पर्याप्त व अपर्याप्त योग असंख्यातगुणा होता है। अथवा यह प्रधान निर्देश है, इसलिये 'अन्य जीवोंमें भी आगमाविरोधसे रहा' ऐसा इस सूत्रका आशय समझना चाहिये।
१ प्रतिषु ' सहस्साउमा आउ-' इति पाठः।
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