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________________ ४७०) छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, २, ४, १८६ संदिट्ठी एसा | ८| 0 |२|३|४।९।९। फद्दयसलागसंकलणाए चउत्थपंतिपढमदव्वे गुणिदे |१६ । २ । ।_ तप्पंतीए सव्वदव्वमागच्छदि । तस्स ठवणा|८|. |२ ९|९|| पुणो एदेसु पढम-विदियपंतीणं दव्वाणि पहा-1 |१६ |२|२|णाणि, इदरदोपंतीणं दव्वाणि अप्पहाणाणि । तदो आदिमदोपंतीणं दव्वाणि मेलाविय एगरूवासंखेज्जभागं पक्खिविय फद्दयविसेसस्स हेट्ठिमदोरूवेहि अंतिमच्छेदं गुणिय हुवेदव्वं । तं च एदं|८| 0 |४|४,९/९| ९ |५|| पुणो पुग्विल्लबिदियगुणहाणिदव्वम्मि गुणगारं होण | १६ ट्ठिददोगुणहाणीयो पुव्वं व विसिलेसं कादूग दोरूवेहि' अंतिमअंसं गुणिय सरिसच्छेद कादण पुव्विल्लअहियदव्वं अवणिय पढमगुणहाणिदबस्स पस्से ठवेदध्वं । तं च एवं |८| |४|४|९/९/९/१३ || पुणो तदियगुणहाणिदव्वे अणिज्जमाणे पढम |१२ गुणहाणीए आदिफद्दयचदुब्भागं दुप्पडिरासिं कादूण तत्थेगरासिं गुणहाणिफद्दयसलागवग्गदुगुणेण गुणिय अवरं पि तस्स चेव संकलणाए गुणिय है। उसकी संरष्टि यह है (मूलमें देखिये )। स्पर्धकशलाकासंकलनासे चतुर्थ पंक्तिके प्रथम द्रव्यको गुणित करनेपर उस पंक्तिका सब द्रव्य आता है। उसकी स्थापना (मूलमें देखिये)। अब इनमें प्रथम व द्वितीय पंक्तिके द्रव्य प्रधान हैं, अन्य दो पंक्तियों के द्रव्य अप्रधान हैं । इसलिये प्रथम दो पक्तियोंके द्रव्यों को मिलाकर एक रूपके असंख्यातवें भागको मिलाकर स्पर्धकविशेषके अधस्तन दो रूपों द्वारा अन्तिम खण्डको गुणित कर स्थापित करना चाहिये। वह यह है (मूलमें दखिये)। पुनः पूर्वोक्त द्वितीय गुणहानिके द्रव्यमें गुणकार होकर स्थित दो गुणहानियोंको पूर्वके समान विश्लेषित करके दो रूपोंके द्वारा अन्तिम भागको गुणित कर व समानखण्ड करके उसमें से पूर्वके अधिक द्रव्यको घटाकर प्रथम गुणहानि सम्बन्धी द्रव्यके पासमें स्थापित करना चाहिये । वह यह है (मूलमें देखिये )। फिर तृतीय गुणहानिके द्रव्यको लाते समय प्रथम गुणहानिके प्रथम स्पर्धकके चतुर्थ भागकी दो प्रतिराशियां करके उनमें एक राशिको दुने गुणहानिस्पर्धकशलाकावर्गसे गुणित करके तथा दूसरी राशिको भी उसीका संकलनासे गुणित करके स्थापित करने पर संक्षेपसे तृतीय गुणहानिका द्रव्य होता 1 अप्रतौ ' दोहि रूवेहि ' इति पाठः । २ मप्रतिपाठोऽपम् । अ-आ-काप्रतिषु · अंतिमसंगुणिय', तापतौ अंतिम संगणिय' इति पाठः। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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