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________________ ४, २, ४, १८६.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया ठविदे' थेोरुच्चएण तदियगुणहाणिदव्वं होदि । तं च एदं । || १६ | १६ |४| ९|९| * || १६ | १६ | ४ ||३|| सर्व होरि | ८ | । दाद एत्तियं o १६ १६ १४ ५ । पुणो एत्थ अहिया विभागपडिछेदाणयणं कस्सामा । तं जहा४ २ | आदिगुणहाणिवग्गणविसेसच उब्भागस्स चत्तारिपंतीय पुण्वं व ठवेण तत्थ पढमती दुगुणफद्दयसलागगुणएगा दिए गुत्तरवग्गणवग्गेण गुणेदव्या । विदियती वि एगादिएगुत्तरद्गुणसंकलणागुणवग्गणावग्गेण गुणेयव्वा । तदियपती वि दुगुणफद्दय सलागगुणरूवूणवग्गणसंकलणाए गुणेयव्वा । चउत्थपंती एगादिएगुत्तररूवगुणरूवूणवग्गणसला ग संकलणगुणिदमेत्ता । एदासिं चदुष्णं पंतीणं आदिदव्वाणि जहाकमेण रूवूणफद्दयसलागसंकलणाए च तस्सेवं दुगुणसंकलणासंकलणाए गुणहाणिफद्दयस लागाहि य तेर्सि चैव संकलणाए गुणेदव्वाणि । पुणो वग्गणविसेसस्स हेडिमभागहारचदुहि रूवेहि अंतिमच्छेदं गुणिय ठवेदव्वा । ते च एदे - है । वह यह है ( मूलमें देखिये ) । इन दोनोंको मिलानेपर इतना होता है ( मूल में देखिये ) । अब यहां अधिक अविभागप्रतिच्छेदों के लाने का विधान कहते हैं । वह इस प्रकार है - प्रथम गुणहानि सम्बन्धी वर्गणाविशेषके चतुर्थ भागकी पहिलेके ही समान चार पंक्तियोंको स्थापित करके उनमें से प्रथम पंक्तिको दूनी स्पर्धकशलाका ओंसे गुणित एकको आदि लेकर एक-एक अधिक वर्गणावर्गले गुणित करना चाहिये । द्वितीय पंक्ति को भी एकको आदि लेकर एक-एक अधिक दूनी संकलनासे गुणित वर्गणावर्ग से गुणित करना चाहिये । तृतीय पंक्तिको भी दूनी स्पर्धकशलाकाओंसे गुणित एक कम वर्गणा संकलनासे गुणित करना चाहिये । चतुर्थ पंक्ति एकको आदि लेकर एक-एक अधिक रूपोंसे गुणित एक कम वर्गणाशलाकसंकलनासे गुणित करनेपर जो राशि प्राप्त हो उतनी मात्र है । इन चारों पंक्तियोंके प्रथम द्रव्योंको यथाक्रम से एक कम स्पर्धकशलाक संकलनासे, उसकी ही दुगुणित संकलनासंकलनासे, गुणहानिकी स्पर्धकशलाकाओंसे, तथा उनकी ही संकलनासे गुणित करना चाहिये। फिर वर्गणाविशेषके अधस्तन भागहारभूत चार रूपसे अंतिम भागको गुणित करके स्थापित करना चाहिये । वे ये हैं (मूल में देखिये ) । फिर आदिके दो द्रव्योंको समान खण्ड करके Jain Education International [ ४७१ १ ताप्रतौ ' पि चैव तस्स संकलणाए गुणिय वङ्काविदे ' इति पाठः । २ अ आ-काप्रतिषु ' तस्स चैव इति पाठः । ३ ताप्रतौ ' तस्येव दुगुणसंकलणा संकलणाए च गुणहाणिफड्डयसलागाहिय-तेर्सि चेव संकलणाए च गुणदव्वाणि ' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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