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________________ ४, २, ४, १८५ ] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया [१५७ क्खित्तसरिसधणियस्स वग्गणसण्णं काऊण एगोलीए फद्दयसण्णं काऊण णिक्खेवाइरियपरूविदगाहाणमत्थं भणिस्सामो । तं जहा-एत्थ ताव एसा संदिट्ठी ठवेदव्वा १ । | १९ ।२७।०३५ ० १८० | २६ | ०३४।० ४२।०५० ४१.४९ | ०४८।० ५ . MYC ४ . ८८८८० पढमिच्छसलागगुणा तत्थादीवग्गणा चरिमसुद्धा । सेसेण चरिमहीणा सेसेगूणं तमागासं ॥ २० ॥ सव्वफद्दयाणमादिवग्गणाओ फद्दयंतराणि च जाणावणट्ठमेसा गाहा परूविदा । संपहि एदिस्से गाहाए अत्थो बुच्चदे। तं जहा-- 'पढमिच्छेसलागगुणा तत्थादी वग्गणा' पढमा आदिवग्गणेत्ति वुत्तं होदि । इच्छसलागाओ णाम इच्छिदफद्दयसंखा, तीए आदिवग्गणं गुणिदे तत्थ आदिवग्गणा होदि । पढमफद्दयस्स आदिवग्गणा धनवालोंको अपने भीतर रखनेवाले एक वर्गकी वर्गणा संक्षा व एक वर्गपंक्तिकी स्पर्धक संज्ञा करके निक्षेपाचार्य द्वारा कही गई गाथाओंका अर्थ कहते हैं। वह इस प्रकार है- पहिले यहां इस संदृष्टिको स्थापित करना चाहिये ( मूलमें देखिये)। प्रथम स्पर्धककी आदिम वर्गणाको अभीष्ट स्पर्धकशलाकाओंसे गुणित करनेपर वहांकी आदिम वर्गणाका प्रमाण होता है । इसमेंसे पिछले स्पर्धककी चरम वर्गणाको कम करनेपर जो शेष रहे उतनी चूंकि अगले स्पर्धककी प्रथम वर्गणासे पिछले धेककी अन्तिम वगेणा हीन है, अतः उस शेष मेसे एक कम करनेपर अवशेष आकाश अर्थात् स्पर्धकोंके अन्तरका प्रमाण होता है ॥२०॥ सब स्पर्धकोंकी आदिम वर्गणाओंको और स्पर्धकोंके अन्तरोंको बतलानेके लिये इस गाथाकी प्ररूपणा की गई है। अब इस गाथाका अर्थ कहते हैं। वह इस प्रकार है- यहां 'पढम' से अभिप्राय प्रथम स्पर्धककी प्रथम वर्गणासे है । इच्छित शलाकाओंसे अभिप्राय अभीष्ट स्पर्धकसंख्यासे है। उस संख्यासे आदिम वर्गणाको गुणित करनेपर वहांकी आदिम वर्गणाका प्रमाण होता है । उदाहरणार्थ-प्रथम । अ-आ-काप्रतिषु 'पदमिछ.', ताप्रती 'पद (द) मिच्छ-' इति पाठः। २ अ-आ-काप्रतिषु 'पदमिछ-', ताप्रती 'पद (ट) मिच्छ-' इति पाठः। ३ प्रतिषु 'तीदाए'इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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