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________________ छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ४, ३. अजहण्णा णाणावरणवेयणा सिया उक्कस्सा, अजहण्णुक्कस्सस्स ओघुक्कस्सा दो पुध अणुवलंभादो । सिया अणुक्कस्सा, तदविणाभावित्तादो । सिया सादिया, पल्लट्टणेण विणा अजहण्णपदविसेसाणमवट्ठाणाभावादो । सिया अद्भुवा । कारणं सुगमं । सिया ओजा, सिया जुम्मा, सिया ओमा, सिया विसिद्धा । सुगमं । सिया णोमणेोविशिट्ठा, पदविसेसगिरोहादो | एवमजहण्णा गवभंगा दसभंगा वा | ९ || एसो पंचमसुत्तत्थो । .२६ ] सादियणाणावरणवेयणा सिया उक्कस्सिया, सिया अणुक्कस्सिया, सिया जहण्णा, सिया अण्णा, सिया अद्भुवा । ण धुवा, सादिस्स धुवत्तविरोहादो । सिया ओजा, सिया जुम्मा, सिया. ओमा, सिया विसिट्ठा, सिया णोमणोविसिट्ठा | एवं सादियवेयणाए दस भंगा एक रसभंगा वा | १० | | एसो छट्ठसुत्तत्थो । अणादियणाणावरणीयवेयणा सिया उक्कस्सा, सिया अणुक्कस्सा, सिया जहण्णा, ( अजहण्णा, सिया सादिया । कधमणादियाए वेयणाए सादित्तं ? ण, वेयणासामण्णवेक्खाए अजघन्य ज्ञानावरणवेदना कथंचित् उत्कृष्ट है, क्योंकि, जब उत्कृष्ट पद अजघन्य रूपसे विवक्षित होता है तो वह ओघ उत्कृष्ट पद से पृथक् नहीं पाया जाता । कथंचित् अनुत्कृष्ट है, क्योंकि, वह उसका अविनाभावी है । कथंचित् सादि है, क्योंकि, परिवर्तन हुए विना अजघन्य पदविशेषोंका अवस्थान नहीं होता है । कथंचित् अध्रुव है । इसका कारण सुगम है । कथंचित् ओज है, कथंचित् युग्म है, कथंचित् ओम है, और कथंचित् विशिष्ट है । इनका कारण सुगम है । कथंचित् नोओम-नोविशिष्ट है, क्योंकि, जिसकी हानि-वृद्धि नहीं हुई ऐसे पदविशेषकी विवक्षा होने से यह विकल्प पाया जाता है । इस प्रकार अजघन्यके नौ अथवा दस भंग हैं | ९ || यह पांचवें सूत्रका अर्थ है । सादि ज्ञानावरणवेदना कथंचित् उत्कृष्ट है, कथंचित् अनुत्कृष्ट है, कथंचित् जघन्य है, कथंचित् अजघन्य है, और कथंचित् अध्रुव है । ध्रुव नहीं है, क्योंकि, सादिको ध्रुव माननेमें विरोध है । कथंचित् ओज है, कथंचित् युग्म है, कथंचित् ओम है, कथंचित् विशिष्ट है, और कथंचित् नोओम-नोविशिष्ट है । इस प्रकार सादि वेदनाके दस अथवा ग्यारह भंग हैं | १० || यह छठे सूत्रका अर्थ है । अनादि ज्ञानावरणीयवेदना कथंचित् उत्कृष्ट है, कथंचित् अनुत्कृष्ट है, कथंचित् जघन्य है, कथंचित् अजघन्य है, और कथंचित् सादि है । शंका - अनादि वेदना में सादित्व कैसे सम्भव है ? समाधान - नहीं, क्योंकि, जो वेदनासामान्यकी अपेक्षा अनादि है उसके उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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