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४, २, ४, ३.] वेयणमहाहियारे दव्वविहाणे पदमीमांसा
[२५ दुविहसमसंखदसणादों। सिया ओमा, कत्थ वि हाणीदो समुप्पण्णअणुक्कस्सपदुवलंभादो। सिया विसिहा, कत्थ वि वड्डीदो अणुक्कस्सपदुवलंभादो । सिया णोमणोविसिट्ठा, अणुक्कस्सजहण्णम्मि अणुक्कस्सपदविसेसे वा अप्पिदे वड्डि-हाणीणमभावादो । एवं णाणावरणाणुक्कस्सवेयणा णवपदप्पिया । ९ ।। एवं तदियसुत्तपरूवणा कदा।
जहण्णा णाणावरणवेयणा सिया अणुक्कस्सा, अणुक्कस्सजहण्णस्स ओघजहाणेण विसेसाभावादो । सिया सादिया, अजहण्णादो जहण्णपदुप्पत्तीए । सिया अदुवा, सासदभावेण अवट्ठाणाभावादो । सिया जुम्मा, चदुहि अवहिरिज्जमाणे अग्गाभावादो । सिया णोमणोविसिट्ठा, वडि-हाणीणमभावादो। एवं जहण्णवेयणा पंचपयारा सरूवेण छप्पयारावा | ५। एवं चउत्थसुत्तपरूवणा ।
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क्योंकि, कहींपर दोनों प्रकारकी समसंख्या (ऐसी संख्या जिसे चारसे विभक्त करनेपर कुछ भी शेष न रहे या दो अंक शेष रहें ) देखी जाती है। स्यात् ओम है, क्योंकि, कहींपर हानि होनेसे उत्पन्न हुआ अनुत्कृष्ट पद पाया जाता है । स्यात् विशिष्ट है, क्योंकि, कहींपर वृद्धिके होनेसे उत्पन्न हुआ अनुत्कृष्ट पद पाया जाता है । स्यात् नोओम-नोविशिष है, क्योंकि, अनुत्कृष्ट रूप जघन्य पदकी अथवा अनुत्कृष्ट रूप पदविशेषकी विवक्षा होनेपर वृद्धि और हानि नहीं होती। इस प्रकार शानावरण अनुत्कृष्ट वेदना नौ पद रूप है|९|| इस प्रकार तृतीय सूत्रकी प्ररूपणा की।
जघन्य ज्ञानावरणवेदना कथंचित् अनुत्कृष्ट है, क्योंकि, सामान्य जघन्य पदसे अनुत्कृष्ट रूप जघन्य पदमें कोई अन्तर नहीं है। कथंचित् सादि है, क्योंकि, अजघन्यले जघन्य पद उत्पन्न होता है । कथंचित् अध्रुव है, क्योंकि, वह शाश्वत रूपसे नहीं पाया जाता । कथंचित् युग्म है, क्योंकि, उसे चारसे अवहृत करनेपर कोई अंक शेष नहीं रहता । कथंचित् नोओमनोविशिष्ट है, क्योंकि, उसमें वृद्धि और हानि नहीं होती । इस प्रकार जघन्य वेदना पांच प्रकारकी है अथवा स्वपदके साथ छह प्रकारकी है|५। [आशय यह है कि जघन्य वेदना अन्य अजघन्य आदि रूप पदोंकी अपेक्षा पांच प्रकारको है और इनमें जघन्य पदको जघन्य रूप मानकर मिला देनेपर वह छह प्रकारकी हो जाती है। ] इस प्रकार चतुर्थ सूत्रकी प्ररूपणा की।
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१ प्रतिषु ' एवं कदिसुत्त.' इति पाठः । २ अ-सप्रयोः ‘वा | ६ [' इति पाठः ।
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