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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ४, ३.
क्कस्सादा उक्स्सदव्वुष्पत्तीए । सिया अद्भुवा, उक्कस्सपदस्स' सव्वकालमवट्ठाणाभावादो । [सिया ] तेजोजो, चदुहि अवहिरिज्जमाणे तिण्णिरूवावद्वाणादो। [सिया ] णोमणोविसिट्ठा, वड्डिहाणीणं तत्थ विरोद्दादो । एवमुक्कस्सणाणावरणीयवेयणा पंचपदपिया | ५ | |
अणुक्कस्सणाणावरणीयवेयणा सिया जहण्णा, उक्कस्सं मोत्तूण सेसहेट्ठिमासेसवियप्पे अणुक्कस्से जहण्णस्स वि संभवादो । सिया अजहण्णा, अणुक्कस्सस्स अजहण्णाविणाभावितादो । सिया सादी, उक्कस्सादो अणुक्कस्सुप्पत्तीदा अणुक्कस्सादो वि अणुक्कस्सुप्पत्तिदंसणादा च । अणादिया [ण ] होदि, अणुक्कस्सपदविसेसविवक्खादो | अणुक्कस्ससामण्णम्मि अप्पिदे व अणादिया ण होदि, उक्कस्सादो अणुक्कस्सपदपदिदं पडि सादित्तदंसणादो | ण च णिच्चणिगोदेसु वि अणादित्तं लब्भदि, तत्थाणुक्कस्सपदाणं पल्लट्टणेण सादित्तुवलंभादो । सिया अद्धवा, अणुक्कस्सेक्कपदविसेसस्स सव्वदा अवट्ठाणाभाषादो | सिया ओजा, कत्थ वि पदविसेसम्हि अवट्ठिदविसम संखुवलंभादो । सिया जुम्मा, कत्थवि
अनुत्कृष्टसे उत्कृष्ट द्रव्यकी उत्पत्ति होती है । स्यात् अध्रुव है, क्योंकि, यह उत्कृष्ट पद सर्व काल अवस्थित नहीं रहता । स्यात् तेजोज है, क्योंकि, इसे चारसे अवहृत करनेपर तीन रूप अवस्थित रहते हैं । स्यात् नोओमनोविशिष्ट है, क्योंकि, उसमें वृद्धि और हानि मानने में विरोध आता है । इस प्रकार उत्कृष्ट ज्ञानावरणीयवेदना पांच पद रूप है | ५ ||
अनुत्कृष्ट ज्ञानावरणीयवेदना स्यात् जघन्य है, क्योंकि, उत्कृष्ट विकल्पको छोड़कर अधस्तन शेष समस्त विकल्प रूप अनुत्कृष्ट पदमें जघन्य पद भी सम्भव है । स्यात् अजघन्य है, क्योंकि, अनुत्कृष्ट पद अजवन्य पदका अविनाभावी है । स्यात् सादि है, क्योंकि, उत्कृष्टसे अनुत्कृष्टकी उत्पत्ति होती है और अनुत्कृष्टसे भी अनुत्कृष्टकी उत्पत्ति देखी जाती है। अनादि [नहीं] है, क्योंकि, यहां अनुत्कृष्ट रूप पदविशेषकी विवक्षा है। अनुत्कृष्टसामान्यकी विवक्षा होनेपर भी अनादि नहीं है, क्योंकि, उत्कृष्टसे अनुत्कृष्ट पदके होनेपर सादित्व देखा जाता है । यदि कहा जाय कि इस पदका नित्यनिगोदिया जीवोंमें अनः दित्व प्राप्त हो जायगा सो भी बात नहीं है, क्योंकि, वहां अनुत्कृष्ट पदके पलटने से यह सादित्व पाया जाता है । स्यात् अध्रुव है, क्योंकि, अनुत्कृष्ट रूप एक पदविशेषका सर्वदा अवस्थान नहीं रहता । स्यात् ओज है, क्योंकि, अनुत्कृष्टके जितने भेद हैं उनमें से किसी भी पदविशेषमें विषम संख्याका सद्भाव पाया जाता है । स्यात् युग्म है,
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प्रतिषु पदस्स ऍदस्स', मप्रतौ ' पदस्स पदस्स ' इति पाठः ।
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