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________________ ४, २, ४, ३. ] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे पदमीमांसा (२३ जो रासी चदुहि अवहिरिज्जमाणो दोरूवग्गो होदि सो बादरजुम्मं । जो एगग्गो' सो कलियोजो । जो तिगग्गो सो तेजोजो' । उत्तं च चोदस बादरजुम्मं सोलस कदजुम्ममेत्य' कलियोजो तेरस तेजोजो खलु पण्णरसेवं खु विष्णेया ॥ ३ ॥ तदो णाणावरणम्हि समदव्वसंभवादो जुम्मत्तं घडदे । सियो आजा, कत्थ वि तत्थ विसमसंखदव्वुवलंभादो । सिया ओमा, कयाई पदेसाणमव चयदंसणादो । सिया विसिट्ठा, कयाई " वयादा अहियायदंसणादो । सिया गोमणोविसिट्ठा', पादेवकं पदावयवे णिरुद्धे वड्डि-हाणीणमभावाद । एवं पढमसुत्तपरूवणा कदा | १३ ।। संपहि विदियसुत्तत्थो वुच्चदे । तं जहा उक्करसणाणावरणीयवेयणा जहण्णा अणुक्कस्सा च ण होदि, पडिवक्खे तस्स अत्थित्तविरोहादो । सिया अजहण्णा, जण्णादो उवरिमसेसदव्ववियप्पावट्ठिदे अजहणणे उक्कस्सस्स वि संभवादो । सिया सादिया, अणु राशिको चारसे अवहृत करनेपर दो रूप शेष रहते हैं वह बादरयुग्म कही जाती है । जिसको चार से अवहृत करनेपर एक अंक शेष रहता है वह कलिओज राशि है । और जिसको चारसे अवहृत करनेपर तीन अंक शेष रहते हैं वह तेजोज राशि है । कहा भी है यहां चौदहको बादरयुग्म, सोलह को कृतयुग्म, तेरहको कलिओज और पन्द्रहको तेजोज राशि जानना चाहिये ॥ ३ ॥ इसलिये ज्ञानावरण में समान द्रव्यकी सम्भावना होनेसे युग्मत्व घटित होता है । म्यात् ओज रूप है, क्योंकि, कहींपर उसमें विसम संख्या युक्त द्रव्य स्यात् ओम है, क्योंकि, कदाचित् प्रदेशोंका अपचय देखा जाता है । क्योंकि, कदाचित् व्ययकी अपेक्षा अधिक आय देखी जाती है नोविशिष्ट है, क्योंकि, प्रत्येक पदभेदकी विवक्षा होनेपर वृद्धि हानि इस प्रकार प्रथम सूत्रकी. प्ररूपणा की | १३ || पाया जाता है । स्यात् विशिष्ट है, । स्यात् नोओमनहीं देखी जाती । अब द्वितीय सूत्रका अर्थ कहते हैं । वह इस प्रकार है - उत्कृष्ट ज्ञानावरणीयवेदना जघन्य और अनुत्कृष्ट नहीं होती, क्योंकि, अपने प्रतिपक्ष रूपसे उसका अस्तित्व माननेमें विरोध आता है । स्यात् अजघन्य है, क्योंकि, अजघन्यमें जघन्यसे ऊपरके शेष सब द्रव्यविकल्प सम्मिलित हैं, इसलिये उसमें उत्कृष्ट भी सम्भव है । स्यात् सादि है, क्योंकि, , १ प्रतिषु ' योगग्गो' इति पाठः । ३ प्रतिषु मेत्त ' इति पाठः । ५ प्रतिषु कदाचे ' इति पाठः । Jain Education International . २ द्रव्यप्रमाण पृ. २४९. ४ प्रतिषु ' कयाहं परूवणाणमव ' इति पाठः । ६ मप्रतौलिया म. जोमगोविसिद्वा इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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