SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२ छक्खंडागमे वेयणाखंड [१, २,९४, ३. समए वट्टमाणम्मि उक्कस्सदव्वुवलंभादो । सिया अणुक्कस्सा, कम्महिदिचरिमसमयगुणिदकम्मंसियं मोत्तूण अण्णत्थ सव्वत्थाणुक्कस्सदव्वुवलंमादो। सिया जहण्णा, खविदकम्मंसियखीणकसायचरिमसमए जहण्णदव्वुवलंभादो । सिया अजहण्णा, सुद्धणयखविदकम्मंसियखीणकसायचरिमसमयं मोत्तूण अण्णत्थ अजहण्णदव्वुवलंभादो । सिया सादिया, उक्कस्सादि. पदाणमेगसरूवेण अवठ्ठाणाभावादो। कधं दवट्ठियणए उक्कस्सादिपदविसेसाणं संभवो? - ण, णइकगमे णइंगमे सामण्णविसेससंभवं पडि विरोहाभावादे।। सिया अणादिया, जीवकम्माणं बंधसामण्णस्स आदित्तविरोहादो । सिया धुवा, अभविएसु अभवियसमाणभविएसु , च णाणावरणसामण्णस्स वोच्छेदाभावादो । सिया अदुवा, केवलिम्हि णाणावरणवोच्छेदुवलंभादो चदुण्णं पदाणं सासदभावेण अवट्ठाणाभावादो वा । (सिया जुम्मा । जुम्मं सममिदिएयट्ठो । तं दुविहं कद-बादरजुम्मभेरण । तत्थ जो रासी चदुहि अवहिरिन्जदि सो कदजुम्मो'। नारकीके उत्कृष्ट द्रव्य पाया जाता है। स्यात् अनुत्कृष्ट है, क्योंकि, कर्मस्थितिके अन्तिम समयवर्ती गुणितकौशिक नारकीको छोड़कर अन्यत्र सर्वत्र अनुत्कृष्ट द्रव्य पाया जाता है। स्यात जघन्य है, क्योंकि, क्षपितकौशिक जीवके क्षीणकषायके अन्तिम समयमें जघन्य द्रव्य पाया जाता है। स्यात् अजधन्य है, क्योंकि, शुद्ध नयकी अपेक्षा क्षपितकौशिक जीवके क्षीणकषायके अन्तिम समयको छोड़कर अन्यत्र अजघन्य द्रव्य पाया जाता है । स्यात् सादि है, क्योंकि, उत्कृष्ट आदि पदोंका एक रूपसे अवस्थान नहीं रहता। शंका-द्रव्यार्थिक नयमें उत्कृष्ट आदि पदविशेष कैसे सम्भव है ? समाधान नहीं, क्योंकि, अनेकको विषय करनेवाले नैगम नयमें सामान्य और विशेष दोनों सम्भव हैं, इसमें कोई विरोध नहीं आता। स्यात् अनादि है, क्योंकि, जीव और कर्मके बन्धसामान्यको सादि मानने में विरोध आता है । स्यात् ध्रुव है, क्योंकि, अभव्यों और अभव्य समान भन्यों में ज्ञानावरणसामान्यका विनाश नहीं होता । स्यात् अध्रुव है, क्योंकि, केवलीमें ज्ञानावरणका व्युच्छेद पाया जाता है,अथवा उक्त चार पदोंका शाश्वत रूपसे अवस्थान नहीं रहता। स्यात् युग्म है। युग्म और सम ये एकार्थवाचक शब्द है। वह कृतयुग्म और बादरयुग्मके भेदसे दो प्रकारका है । उनमें से जो राशि चारसे अवहृत होती है वह कृतयुग्म कहलाती है । जिस १ प्रतिषु । अदित्त' इति पाठः। २ अप्रतौ ' समाणाभविएस ' इति पाठः। ३चतुष्केण हियमाणश्चतुःशेषो हि यो भवेत् । अमावाद् भागशेषस्य संख्यातः कृतयुग्मकः ॥१॥ xxx चतुष्केण हियमाणस्त्रिशेषस्थ्योज उच्यते । द्विशेषो द्वापरयुग्मः कस्योजश्चैकशेषकः ॥२॥xxx तथा च मगवतीसूत्रे-गो. ! जे गं रासी चउक्केण अवहारेणं अवहीरमाणे अवहीरमाणे चउपज्जवसिए से गं कडजम्मे; एवं तिपज्जवसिंए तेजओए, दुपज्जवसिए दावरजग्मे, एगपज्जवसिए कलिओगे” इति । लो. प्र. १२,.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy