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________________ ४, २, ४, १७३. ] वेयणमहाहियारे वयणदव्वविहाणे चूलिया अपज्जत्ताणं एदे जहण्णया उववादजोगा (२५ 0A ०००० ०००००० ०००००००० ०००००००००० ०००००००००० . v . एदे कस्स होति ? पढमसमयतब्भवत्थस्स विग्गहगईए वट्टमाणस्स । केवचिरं कालादो होति ? जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। सुहुम-बादराणं लद्धिअपज्जत्तयाणमेदे जहण्णया एयंताणुवटिजोगा •v A* । सो कस्स होदि ? बिदियसमयतब्भवस्थस्स जहण्णजोगिस्स । सो केवचिरं कालादो होदि १ जहण्णेण उक्कस्सेण य एगसमओ भवदि। सुहुम-बादराणं णिव्वत्तिअपज्जत्तयाणमेदे जहण्णया एयंताणुवड्विजोगा •v A। सो कस्स होदि ? बिदियसमयतब्भवत्थस्स जहण्णजोगिस्स । सो केवचिरं कालादो होदि १ जहण्णुकस्सेण एगसमओ। aan...--- योग हैं (संदृष्टि मूलमें देखिये )। शंका- ये किसके होते हैं ? समाधान-ये विग्रहगतिमें वर्तमान जीवके तद्भवस्थ होने के प्रथम समयमें होते हैं। शंका---- ये कितने काल होते हैं ? समाधान-ये जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होते हैं। सूक्ष्म व बादर लब्ध्यपर्याप्तकोंके ये जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग हैं ( मूलमें )। शंका-वह किसके होता है? समाधान- वह तद्भवस्थ होनेके द्वितीय समयमें जघन्य योगवालके होता है। शंका- वह कितने काल होता है ? समाधान- जघन्य व उत्कर्षसे वह एक समय होता है। सुक्ष्म व बादर निर्वृत्त्यपर्याप्तकोंके ये जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग हैं ( मूलमें)। वह किसके होता है? वह तद्भवस्थ होनेके द्वितीय समयमें वर्तमान जघन्य योगवालेके होता है। वह कितने काल होता है? वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होता है। १-आ-का-ताप्रतिष्वनुपलभ्यमानमेतत् पदं मप्रतितोत्र योजितम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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