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________________ ५२६] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, १७३. सुहुम-बादराणं लद्धिअपज्जत्तयाणमेदे जहण्णया परिणामजोगा •v A* । ते कस्स होति ? परभवियाउअबंधपाओग्गपढमसमयप्पहुडि उवरिमभवहिदीए वट्टमाणस्स । ते केवचिरं कालादो होति १ जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण चत्तारिसमया हवंति । सुहुम-बादराणं णिव्वत्तिअपज्जत्तयाणमेदे जहण्णपरिणामजोगा •V A* । ते कस्स होंति ? सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स पढमसमए वट्टमाणस्स। ते केवचिरं कालादो होति ? जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण चत्तारिसमया । __बीइंदियादि जाव सणिपंचिंदिओ ति एदेसिं लद्धिअपज्जत्तयाणं जहण्णएगंताणुबड्डिजोगा एदे । सो कस्स ? बिदियसमयतब्भवत्थस्स जहण्णजोगिस्त । सो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ .::।। ००० बीइंदियादि जाव सण्णिपंचिंदिओ त्ति एदेसिं णिव्वत्तिअपज्जत्तयाणं जहण्णया एयंताणुवड्डिजोगा । सो कस्स ? बिदियसमयतब्भवत्थस्स जहण्णजोगिस्स । सो केवचिरं सूक्ष्म व बाद लब्ध्यपर्याप्तकोंके ये जघन्य परिणामयोग हैं (मूलमें)। वे किसके होते हैं ? वे परभविक आयुके बन्ध योग्य प्रथम समयसे लेकर उपरिम भवस्थितिमें वर्तमान जीवके होते हैं । वे कितने काल होते हैं। वे जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे चार समय होते हैं। ___ सूक्ष्म व बादर निर्वृत्त्यपर्याप्तकोंके ये जघन्य परिणामयोग हैं (मूलमें)। वे किसके होते हैं ? वे शरीरपर्याप्तिसे पर्याप्त होनेके प्रथम समयमें रहनेवालेके होते हैं । वे कितने काल होते हैं ? वे जघन्यसे एक समय वे उत्कर्षसे चार समय होते हैं । द्वीन्द्रियको आदि लेकर संशी पंचेन्द्रिय तक इन लब्ध्यपर्याप्तकोंके ये जघन्य पकान्तानवद्धियोग हैं। वह किसके होता है? वह तदभवस्थ होनेके द्वितीय समय में वर्तमान जघन्य योगवालेके होता है । वह कितने काल होता है। वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होता है (संदृष्टि मूलमें देखिये)। द्वीन्द्रियको आदि लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय तक इन निर्वृत्त्यपर्याप्तकोंके ये जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग हैं। वह किसके होता है? वह तद्भवस्थ होनेके द्वितीय समयमें वर्त ...................... १ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-ताप्रतिषु ' परिणामजोगा कस्स' इति पाठः। २ ताप्रती 'सो' इति पाठः । ३ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-ताप्रतिषु' होदि' इति पाठः। ४ ताप्रती 'जहणिया एगंताशुवढिजोगा सो' इति पाठः। ५ आ-का-ताप्रतिषु 'सो' इत्येतत् पदं नोपलम्यते । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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