SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 445
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२४ छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, १७३. मेदे उक्कस्सपरिणामजोगा-- ----- > । सो कस्स ०००० ००० ० ० ० ० होदि ? परंपरपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्से । सो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण बे समयाँ । एसा मूलवीणा णाम। ___ सुहुमादिसण्णिपंचिदिओ ति लद्धिअपज्जत्ताणं जहण्णया उववादजोगा एदे::::: । सो कस्स होदि ? पढमसमयतब्भवत्थस्स जहण्णजोगस्स । केवचिरं कालादो : होदि ? जहण्णेण उक्कस्सेण य एगसमओ । सुहुमादिसण्णिपंचिंदियणिव्वत्ति ००००० ००००० - -- - परिणामयोग होते हैं । ( संदृष्टि मूलमें देखिये )। शंका- वह किसके होता है ? समाधान- वह परम्परापर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके होता है। शंका- वह कितने काल होता है ? समाधान- वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय होता है। यह मूलवीणा कहलाती है। सूक्ष्मसे लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय तक लब्ध्यपर्याप्तकोंके ये जघन्य उपपादयोग होते हैं (संदृष्टि मूलमें देखिये)। शंका-- वह किसके होता है ? समाधान-वह तद्भवस्थ हुए जघन्य योगवाले जीवके प्रथम समयमें होता है। शंका- वह कितने काल होता है ? समाधान- वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होता है । सूक्ष्मको आदि लेकर संशी पंचेन्द्रिय निर्वृत्तिअंपर्याप्तकों के ये जघन्य उपपाद . अ-आ-काप्रतिषु जोगो' इति पाठः। २ मप्रतिपाठोऽयम् । अ-आ-का-ताप्रतिषु 'परंपरपज्जसयदस्स' इति पाठः। ३ अ-काप्रत्योः 'वेसमओ' इति पाठः।४ताप्रती 'जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ'इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy