SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, २, ४, १७३.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया [ ४२३ हेट्ठिमसमओ त्ति । सो केवचिरं कालादो होदि १ जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण बे समया । बेइंदियादि जाव सण्णिपंचिंदियणिव्वत्तिपज्जत्तओ त्ति एदेसि जहण्णपरिणामजोगाएद-::::: । सो कत्थ होदि ? पढमसमयपज्जत्तयदम्मि। सो केवचिरं कालादो होदि १ जहण्णेण: एगसमओ, उक्कस्सेण चत्तारिसमओ होदि । बीइंदियादि जाव सण्णिपंचिंदियो त्ति एदेसिं णिव्वत्तिअपज्जत्तयाणमेदे उक्कस्सया एगंताणुवड्डिजोगा। सो एयंताणुवड्डिजोगो उक्कस्सओ कत्थ घेपदि ? सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदो होहदि त्ति हिदम्मि घेप्पइ । केवचिरं कालादो एयंताणुवड्डिजोगो होदि ? जहण्णुक्कस्सेण एगो समओ । बेइंदियादि जाव सण्णिपंचिंदियणिव्वत्तिपज्जओ त्ति एदेसि शंका-उक्त योग कितने काल होता है ? समाधान- वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय होता है । द्वीन्द्रियको आदि लेकर संशी पंचेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तक तक इनके ये जघन्य परिणामयोग होते हैं ( संदृष्टि मूलमें देखिये)। शंका- वह कहांपर होता है ? समाधान- वह पर्याप्त होने के प्रथम समयमें होता है। शंका-वह कितने काल होता है ? समाधान -वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे चार समय होता है। द्वीन्द्रियको आदि लेकर संशी पंचेन्द्रिय तक इन निवृत्त्यपर्याप्तकोंके ये उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोग होते हैं । शंका- वह उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोग कहांपर ग्रहण किया जाता है ? समाधान- वह शरीरपर्याप्तिसे पर्याप्त होगा, इस प्रकार स्थित जीवमें ग्रहण किया जाता है। शंका-एकान्तानुवृद्धियोग कितने काल होता है ? समाधान- वह जघन्य व उकर्षसे एक समय होता है। द्वीन्द्रियको आदि लेकर संक्षी पंचेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तक तक इनके ये उत्कृष्ट काप्रतौ ' एदेसि णिव्यत्तिअपज्जत्तयाणमेदे उक्कस्म-जहण्णपरिणामनोगा। सो' इति पाठः। अतः प्राक् अ-मा-काप्रतिषु । नमो वीतरागाय शान्तये' इत्येतद् वाक्यमुपलभ्यते । ३ -आ-काप्रतिषु 'धेप्पदि काले सरीर, ताप्रती 'प्पदि [ कालो ] सरीर-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy