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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ४, १७१.
सुहुम- बादराणं णिव्वत्तिपज्जत्तयाणमेदे जहण्णया परिणामजोगी । सो जहणपरिनामजोगो तेर्सि कत्थ होदि ? सरीरपज्जतीए पज्जत्तयदस्स पढमसमए चेव होदि । केवचिरं कालादो १ जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण चत्तारि समया । तस्सुवरि तेर्सि चैव उक्कस्सिया परिणामजोगा । सो कस्स होदि । परंपरपज्जत्तीए पजत्तयदस्स । सो केवचिरं कालादो होदि ? जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण वे समया । तदुवरि सुहुमबादराणं लद्धिअपज्जत्तयाणमुक्कस्सया परिणामजोगा । ते कत्थ होंति ? आउअबंधपाओग्गपढमसमयादो जाव भवद्विदीए चरिमसमओ ति एत्थुसे होंति । आउअबंधपाओग्गकालो' केत्तिओ ? सगजीविदतिभागस्स पढमसमय पहुडि जाव विस्समणकाल अनंतर
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गति में जघन्य स्वामित्व दिया गया है। सूक्ष्म व बादर निर्वृत्तिपर्याप्तकों के ये जघन्य परिणामयोग हैं |
शंका- वह जघन्य परिणामयोग उनके कहांपर होता है ?
समाधान वह शरीरपर्याप्ति से पर्याप्त होने के प्रथम समय में ही होता है ।
शंका- वह कितने काल रहता है ?
समाधान — वह जघन्य से एक समय और उत्कर्षसे चार समय रहता है । उससे आगे उनके ही उत्कृष्ट परिणामयोग होते हैं ।
शंका
वह किसके होता है ?
समाधान - वह परम्परापर्याप्तिले पर्याप्त हुए जीवके होता है । शंका- वह कितने काल होता है ।
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समाधान - वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से दो समय होता है । उसके आगे सूक्ष्म व बादर लब्ध्यपर्याप्तकों के उत्कृष्ट परिणामयोग होते हैं ।
शंका- वे कहां होते हैं ।
समाधान — वे आयुबन्धके योग्य प्रथम समयसे लेकर भवस्थितिके अन्तिम समय तक इस उद्देशमें होते हैं।
शंका- आयुबन्धके योग्य काल कितना है ?
समाधान- अपने जीवितके तृतीय भागके प्रथम समय से लेकर विश्रमणकालके अनन्तर अधस्तन समय तक आयुबन्धके योग्य काल माना गया है।
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१ सामतौ ' परिणामजोगा "
...... ।' इति पाठः । अ-आ-काप्रतिषु काले' इति पाठः ।
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