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________________ ४, २, ४, १७३ ] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविद्दाणे चूलिया [ ४१७ सेडीए असंखेज्जदिभागर्मतरं होणं सुहुमेइंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्से जहण्णओ परिणामैजोगो असंखेज्जगुणो । बादरे इंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो । सुहुमेइंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो । बादरेइंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो । तदो सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्तं अंतरं होण बेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णएयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो । तेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ एयंतार्णैवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो । चउरिदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ एयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो । असण्णिपंर्चिदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जण्णओ एयंताणुवड्ढिजोगो असंखेज्जगुणो । सष्णिपंचिंदियलद्धि अपज्जत्तयस्स जहण्णओ एयंताणुवड्ढिजे!गो असंखेज्जगुणो । बेइंदियलद्धि अपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ एयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो । तेइंदियलद्धि अपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ एयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो । चउरिदियलद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ एयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो । असणिपंचिंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ एयंताणुवड्ढिजोगो असंखेज्जगुणो । सणिपंचिदियलद्धि गुणा है। उससे आगे श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र अन्तर होकर सूक्ष्म एकेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग असंख्यातगुणा है। उससे बादर एकेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग असंख्यातगुणा है । उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकका उत्कृष्ट परिणामयोग असंख्यातगुणा है । उससे बादर एकेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकका उत्कृष्ट परिणामयोग असंख्यातगुणा है। इसके आगे श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र अन्तर होकर द्वीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यात - गुणा है। उससे त्रीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है । उससे चतुरिन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है। उससे असंशी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है। उससे संशी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है । उससे द्वीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है। उससे त्रीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट पकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है । उससे चतुरिन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है। उससे असंशी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है । उससे १ अ-आ-काप्रतिषु ' होदूण ' इत्येतत्पदं नोपलभ्यते । २ ताप्रतौ ' णिव्यत्तिअपज्जतयस्स ' इति पाठः । ३ का-ताप्रत्योः ' नहण्णपरिणाम ' इति पाठः । ४ ताप्रतौ ' जहण्णÇयंताणु ' इति पाठः । . वे. ५१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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