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________________ ४१६ छक्खंडागमे वेयणाखंड (४, २, ४, १७३. सुहुमेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ एयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो। सण्णिपंचिंदियणिवत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ उववादजोगो असंखेज्जगुणो। सुहुमेइंदियणिवत्ति अज्जत्तयस्स जहण्णओ एयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो । बादरेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ एयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो। बादरेइंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्त जहण्णाओ एयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो । सुहुमेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ एयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो। सुहमेइंदियणिवत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ एयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो। बादरेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ एयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो। बादरेइंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ एयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो। तदो सेडीए असंखेन्जदिभागमेत्ताणि जोगट्ठाणाणि अंतरिदूण सुहुमेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ परिणामजोगो असंखेजगुणो । बादरेइंदियलद्धिअपज्ज तयस्स जहण्णओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो । सुहुमेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो। बादरेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो। तदो योग असंख्यातगुणा है । उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है । उससे संशी पंचेन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट उपपादयोग असंख्यातगुणा है । उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है । उससे बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातशुणा है । उससे बादर एकेन्द्रिय निवृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है । उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है । उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय निवृत्त्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है । उससे बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है। उससे बादर एकेन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है । उससे आगे श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र योगस्थानोंका अन्तर करके सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य परिणाम. योग असंख्यातगुणा है । उससे बाद एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग असंख्यातगुणा है। उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट परिणामयोग असं. ख्यातगुणा है । उससे बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट परिणामयोग असंख्यात. १ सणि स्सुत्रवादवरं णिवत्तिगदस्स मुहुमजीवस्त । एयंतवड्डि अवरं लद्धिदरे थूल-थूले य ॥ गो. क. २३७. २ तह मुहुम-सुहमजेटुं तो बादर-बादरे वरं होदि। अंतरमवरं लद्धिगमहमिदर-वरं पिपरिणामे ॥ गो. क.२३८. ३ अंतरमुवरी वि पुणो तप्पुण्णाणं च उवरि अंतरियं । एयंतवढिठाणा तसपणलद्धिस्स अबर-बरा ॥ गो. क. २३९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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