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________________ 2201 छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ४, १७३. बसयस्स उक्कस्सओ एयंताणुवडिजोगो असंखेज्जगुणो। तदो सेडीए असंखेज्जीदभागमेतकोमामाणि अंतरिदण बेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो। तेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो । चउरिदियलद्धिअपज्जत्तयसमा जहण्णओ परिणामजोगों असंखेज्जगुणो। असण्णिपंचिंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो। सण्णिपंचिंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो। इंदियलद्धिअपज्जतयस्स उक्कस्सओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो । तेइंदिसलद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो। चउरिदियलद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो। असण्णिपंचिंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स उनकस्सओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो। सण्णिपंचिंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो । तदो सेडीए असंखेज्जदिभागमेतजोगट्टाणाणि अंतरिदण घेइंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ एयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो । तेइंदियणिवत्तिअपजत्तयस्स जहण्णओ एयंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो । चउरिदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णो एयताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो । असण्णिपंचिंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स संझी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है । उससे आगेश्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र योगस्थानोंका अन्तर करके द्वीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग असंख्यातगुणा है। उससे त्रीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग असंख्यातगुणा है । उससे चतुरिन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग असंख्यातगुणा है । उससे असंही पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग मसंख्यातगुणा है। उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग असंख्यातगुणा है। उससे द्वीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट परिणामयोग असंख्यातगुणा है। उससे त्रीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट परिणामयोग असंख्यातगुणा है। उससे चतुरिन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट परिणामयोग असंख्यातगुणा है। उससे असंही पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट परिणामयोग असंख्यातगुणा है। उससे संक्षी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट परिणामयोग असंख्यातगुणा है । उससे आगे श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र योगस्थानोंका अन्तर करके द्वीन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है। उससे त्रीन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है । उससे चतुरिन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है। उससे असंझी पंचेन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य लद्धी-णिवत्तीण परिणामवंतवदिगणाओ। परिणामडाणाओ अंतर-अंतरिय उवस्वरि ॥ गो.क.१४०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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