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________________ ११०] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, १७३ वड्डिजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । तेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णमेगंताणुवड्डिजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । चउरिदियलद्विअपज्जतयस्स जहण्णमेगताणुवड्डिजोगट्ठाणमसंखज्जगुगं । असणिणपंचिंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णमेगंताणुवड्डिजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । सगिपंचिंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णमेगताणुवड्डिजोगवाणमसंखेज्जगुणं । बेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो। तीइंदियलद्धिअपज्जतयस्स जहण्णओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो । चउरिदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ परिणामजागो असंखेज्जगुणो । असणिणपंचिंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो । सणिपंचिं. दियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहणाओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो । बेइंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ एगताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो । तीइंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ एगंताणुवड्डिजोगो असंखेज्जगुणो। चउरिदियणिवत्तिअपज्ज तयस्स जहण्णओ एगताणुवहिजोगो असंखेज्जगुणो । असण्णिपंचिंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ एगताणुवड्डि. जोगो असंखेज्जगुणो । [ सणिपंचिंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णओ एगंताणुवड्विजोगो असंखज्जगुणो । ] बेइंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो । तेइंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णओ परिणामजोगो असंखेज्जगुणो। चउरिदियणिवत्ति न्तानुवृद्धियोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे त्रीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे चतुरिन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे असंही पंचेन्द्रिय लब्ध्य. पर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे द्वीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग असंख्यातगुणा है। उससे त्रीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग असंख्यातगुणा है। उससे चतुरिन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग असंख्यातगुणा है । उससे असंही पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग असंख्यातगुणा है। उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग असंख्यातगुणा है। उससे द्वीन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है। उससे त्रीन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है। उससे चतुरिन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है। उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय निर्वत्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है।[उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय निर्वत्त्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग असंख्यातगुणा है।] उससे द्वीन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग असंख्यातगुणा है। उससे त्रीन्द्रिय निवृत्तिपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोग असंख्यातगुणा है। उससे चतुरिन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकका जघन्य परिणाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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