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________________ १, २, ४, १७३.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया [४०९ यस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । चउरिदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं। चउरिंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । असण्णिपंचिंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । असणिपंचिंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं। सण्णिपंचिंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । सण्णिपंचिंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणमसंखेजगुणं । सुहुभेइंदियलद्धिअपजत्तयस्स जहण्णमेगंताणुवड्डिजोगट्टाणमसंखेजगुणं । सुहुमेइंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णमेगंताणुवड्डिजोगट्ठाणमसंखेजगुणं । बादरेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णमेगताणुवड्डिजोगट्ठाणं असंखेज्जगुणं । बादरेइंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णमेगताणुवड्डिजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । सुहुमेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णपरिणामजोगट्टाणमसंखेज्जगुणं । बादरेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णपरिणामजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । सुहुमेइंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णपरिणामजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । बादरेइंदियणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णपरिणामजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । बेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जदण्णमेगताणु निवृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोगस्थान असंख्यातगुणा है। उससे चतुरिन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोगस्थान असंख्यातगुणा है। उससे चतुरिन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे असंही पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोगस्थान असंख्यातगुणा है। उससे असंही पंचेन्द्रिय निवृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे संज्ञी पंचेद्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे संज्ञी पंचेद्रिय निवृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोगस्थान असंख्यातगुणा है। उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय नित्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोगस्थान असंख्यातगुणा है। उससे बादर एकेन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य एकान्तानुवृद्धियोगस्थान असंख्यातगुणा है। उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोगस्थान असंख्यातगुणा है। उससे बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे बादर एकन्द्रिय निर्वृत्तिपर्याप्तकका जघन्य परिणामयोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे द्वीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य एका १ अ-आ-काप्रतिष्त्रनुपलभ्यमानं वाक्यमिदं मप्रतितोऽत्र योजितम् , ताप्रतौ कोष्ठकान्तर्गतमस्ति तत् । २ तापतौ 'जहण्णमुवाद-' इति पाठः। छ.वे. ५२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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