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________________ ४०८] छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, १७३. परिणामजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सेवं णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णएयंताणुवड्डिजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा। तस्सेव णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सएयंताणुवड्डिजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सेव णिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णपरिणामजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सव णिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सपरिणामजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेजगुणा । एवं चेव तीइंदियादीणं पि परत्थाणअप्पबहुगं जाणिदूण भाणिदव्वं । एत्तो सव्वपरत्थाणप्पाबहुगं तिविहं- जहण्णयमुक्कस्सयं जहण्णुक्कस्सयं चेदि । तत्थ जहण्णप्पाबहुगं भणिस्सामो। तं जहा- सव्वत्थोवं सुहुमेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणं । सुहुमेइंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणमसंखेज्ज. गुणं । बादरेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । बादरेइंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणं असंखेज्जगुणं । बेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । बेइंदियणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । तेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणमसंखेज्जगुणं । तेइंदियणिव्वत्तिअपज्जत्त गुणे हैं। उनसे उसी निर्वृत्त्यपर्याप्तकके जघन्य एकान्तानुवृद्धियोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं। उनसे उसी निर्वृत्यपर्याप्तकके उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं। उनसे उसी निर्वृत्तिपर्याप्तकके जघन्य परिणामयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं। उनसे उसी निवृत्तिपर्याप्तकके उत्कृष्ट परिणामयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं। इसी प्रकार ही त्रीन्द्रिय आदि जीवोंके भी परस्थान अल्पबहुत्वको जानकर कहना चाहिये ।। यहां सर्वपरस्थान अल्पबहुत्व तीन प्रकार है- जघन्य, उत्कृष्ट और जघन्योत्कृष्ट । उनमें जघन्य अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है- सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोगस्थान सबसे स्तोक है। उससे सूक्ष्म एकेन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे बादर एकेन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे द्वीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे द्वीन्द्रिय निर्वृत्त्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे त्रीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य उपपादयोगस्थान असंख्यातगुणा है । उससे त्रीन्द्रिय , आमतौ ' तस्सेव लद्धिअपज्जः उक्क० एवं तस्सेव' इति पाठः। २ अ आ-काप्रतिषु ' तीदियाणं ' इति:पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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