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________________ ४, २, ४, १७३ ] वैयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया [ ४०७ उक्रस एयंताणु डिजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सुवरि तस्सेव लद्धिअपज्जत्तयस्स जहृण्णपरिणामजोगट्टाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सुवरि तस्सेव उक्कस्स परिणाम जोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सुवरि णिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णपरिणामजोगडाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सुवरि णिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्स परिणाम जोगट्ठा णस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । एवं चैव बाद इंदियस विपरत्थाणप्पा बहुगं वत्तव्वं । सव्वत्थोवा बीइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववाद जोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा । [ तस्सेव लद्धिअज्जत्तयस्स उक्कस्सुववादजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा ।] तस्सेव णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववाद जोगद्वाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । [ तस्सेव णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सुववाद जोगट्ठाणस्स अविभागपरिच्छेदा असंखेज्जगुणा । ] तस्सेव लद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णएयंताणुवड्डि जोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सेव लद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सएयंताणुवड्ढिजोगडास अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सेव लद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णपरिणामजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सेव लद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्स एकान्तानुवृद्धियोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं। इसके आगे उसी लब्ध्यपर्याप्तक के जघन्य परिणामयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं। इसके आगे उसीके उत्कृष्ट परिणामयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे निरृत्तिपर्याप्तक के जघन्य परिणामयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे निर्वृत्तिपर्याप्तक के उत्कृष्ट परिणामयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसी प्रकार ही बादर एकेन्द्रिय जीवके भी परस्थान अल्पबहुत्वको कहना चाहिये । द्वीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक के जघन्य उपपादयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद सबसे स्तोक हैं । [ उनसे उसी लब्ध्यपर्याप्तकके उत्कृष्ट उपपादयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । ] उनसे उसी निर्वृत्यपर्याप्तक के जघन्य उपपादयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । [ उनसे उसी निर्वृत्त्य पर्याप्तक के उत्कृष्ट उपपादयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । ] उनसे उसी लब्ध्यपर्याप्तकके जघन्य एकान्तानुवृद्धियोगस्थान सम्बन्धी अधिभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । उनसे उसी लब्ध्यपर्याप्तकके उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं। उनसे उसी लब्ध्यपर्याप्तकके जघन्य परिणामयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं। उनसे उसी लब्ध्यपर्याप्त के उत्कृष्ट परिणामयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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