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४०६] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ४, १७३. - एत्तो परत्थाणप्पाबहुगं वत्तइस्सामो-किं परत्थाणं ? बादर-सुहुम-बि-ति-चउरिदिय-असण्णि-सण्णिपंचिंदियाणं मज्झे एक्केक्कस्स लद्धिअपज्जत्त-णिव्वत्तिअपज्जत्तणिब्वत्तिपज्जत्तभेदभिण्णस्स उववाद-एयंताणुवड्डि-परिणामजोगट्ठाणाणं जहण्णुक्कस्सभेदभिण्णाणं जमप्पाबहुगं ते परत्थाणं णाम । सव्वत्थोवा सुहमणिगोदलद्धिअपज्जत्त-- यस्स जहण्णउववादजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा । तस्सेव णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णउववादजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा। तस्सुवरि तस्सेव लद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सउववादजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तस्सुवीर तस्सव णिव्यत्तिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सउववादजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा । तरसुवरि तस्सेव लद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णएगंतागुवड्डिजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगणा। तस्सुवरि तस्सेव णिवत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णएगंताणुवड्डिजोगट्ठाणसं अविभागपडिच्छेदा असंखज्जगुणा । तस्सुवरि तस्सेव लद्धिअपज्जत्तयस्स उक्कस्सएयंताणुवडिजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा असंखेज्जगुणा। तस्सुवीर तस्सेव णिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स
............................ अब यहांसे आगे परस्थान अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा करते हैंशंका- परस्थान किसे कहते हैं ? ।
समाधान- बादर, सूक्ष्म, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय तथा असंशी व सनी पंचेन्द्रिय जीवोंके मध्यमें लब्ध्वपर्याप्त, निवृत्त्यपर्याप्त व निवृत्तिपर्याप्तके भेदसे भेदको प्राप्त हुए प्रत्येक जीवके जघन्य व उत्कृष्ट भेदसे भिन्न उपपाद, एकान्तानुवृद्धि एवं परिणाम योगस्थानोंका जो अल्पबहुत्व है वह परस्थान अल्पबहुत्व कहलाता है।
सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तकके जघन्य उपपादयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद सबसे स्तोक हैं । उनसे उसके ही निवृत्त्यपर्याप्तके जघन्य उपपादयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । उसके आगे उसके ही लब्ध्यपर्याप्तकके उत्कृष्ट उपपादयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे उसके ही निवृत्त्यपर्याप्तकके उत्कृष्ट उपपादयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगणे हैं। इसके आगे उसी लब्ध्यपर्याप्तकके जघन्य एकान्तानुवृद्धियोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे उसी निवृत्त्यपर्याप्तकके जघन्य एकान्तानुवृद्धियोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं । इसके आगे उसी लब्ध्यपर्याप्तकके उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद असंख्यातगुणे हैं। इसके आगे उसी निवृत्त्यपर्याप्तकके उत्कृष्ट
, अ-आ-काप्रतिषु 'वेयताशुवटि ' इति पाठः। २ अ-ताश्त्योः 'जनस्स' इति पाठः। ३ अप्रती 'ओगस्स' इति पाठः।
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