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४, २, ४, १६६ ] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया [४०१
असण्णिपंचिंदियअपज्जत्तयस्स उक्कस्सजोगो असंखेज्जगुणो॥ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । कारणं सुगमं ।
सण्णिपंचिंदियअपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ जोगो असंखेज्जगुणो ॥ १६२॥
गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । बीइंदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो॥१६३॥
गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एत्थ णिवत्तिपज्जत्तजहण्णपरिणामजोगो घेत्तव्यो।
तीइंदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो ॥१६४॥
गुणगा। पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो। उवरि सव्वत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो चेव होदि त्ति घेत्तव्वं ।
चउरिंदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो॥१६५॥ सुगम ।
असण्णिपंचिंदियपज्जत्तयस्स जहण्णओ जोगो असंखेज्जगुणो ॥१६६॥
उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकका उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है ॥ १६१।। गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । इसका कारण सुगम है। उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्तकका उत्कृष्ट योग असंख्यातगुणा है ।। १६२॥ गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। उससे द्वीन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य योग असंख्यातगुणा है ॥ १६३ ॥
गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। यहां निवृत्तिपर्याप्तके जघन्य परिणामयोगको ग्रहण करना चाहिये।
उससे त्रीन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य योग असंख्यातगुणा है ॥ १६४॥
गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग है। आगे सब जगह गुणकार पल्योपमका असंख्यातवां भाग ही होता है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये ।
उससे चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य योग असंख्यातगुणा है ॥ १६५ ॥ यह सूत्र सुगम है। उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकका जघन्य योग असंख्यातगुणा है ॥ १६६ ॥ क. वे. ५१.
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